!!८६!! इन सबके बीच में परम तेजस्वी भक्ति ज्ञान और वैराग्य नटों के समान नाचने लगे ऐसा अलौकिक कीर्तन देखकर भगवान प्रसन्न हो गए और इस प्रकार कहने लगे!
!! ८७!! मैं तुम्हारी इस कथा और कीर्तन से बहुत प्रसन्न हूं तुम्हारे भक्तिभाव ने इस समय मुझे अपने वश में कर लिया है अतः तुम लोग मुझसे वर मांगो भगवान के ये वचन सुनकर सब लोग बड़े प्रसन्न हुए और प्रेमार्द्र चित्त से भगवान से कहने लगे !
!!८८!! भगवान हमारी यह अभिलाषा है कि भविष्य में भी जहां कहीं सप्ताह कथा हो वहां आप इन पार्षदों के सहित अवश्य पधारें हमारा यह मनोरथ पूर्ण कर दीजिए भगवान तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गये !
!!८९!! इसके पश्चात नारद जी ने भगवान तथा उनके पार्षदों के चरणों को लक्ष्य करके प्रणाम किया और फिर सुकदेव जी आदि तपस्वियों को भी नमस्कार किया कथामृत का पान करने से सब लोगों को बड़ा ही आनन्द हुआ उनका सारा मोह नष्ट हो गया फिर वे सब लोग अपने-अपने स्थानों को चले गए !
!!९०!! उस समय सुकदेव जी ने भक्ति को उसके पुत्रों सहित अपने शास्त्र में स्थापित कर दिया इसी से भागवत का सेवन करने से श्रीहरि वैष्णवों के हृदय में अआ विराजते हैं !
!!९१!! जो लोग दरिद्रता के दुःखज्वरकी ज्वाला से दग्ध हो रहे हैं जिन्हें माया पिशाचीनी ने रौंद डाला है तथा जो संसार समुद्र में डूब रहे हैं उनका कल्याण करने के लिए श्रीमद्भागवत सिंहनाद कर रहा है !
!!९२!! शौनक जी ने पूछा____ सूत जी सुकदेव जी ने राजा परीक्षित को गोकर्ण ने धुन्धुकारी को और सनकादि ने नारदजी को किस किस समय यह ग्रन्थ सुनाया था मेरा यह संशय दूर कीजिए !
!!९३!! सूत जी ने कहा____ भगवान श्री कृष्ण के स्व धाम गमन के बाद कलियुग के तीस वर्ष से कुछ अधिक बीत जाने पर भाद्रपद मास की शुक्ल नवमी को सुकदेव जी ने कथा आरम्भ की थी !
!!९४!! राजा परीक्षित के कथा सुनने के बाद कलियुग के दो सौ वर्ष बीत जाने पर आषाढ़ मास की शुक्ल नवमी को गोकर्ण जी ने यह कथा सुनाई थी !
!!९५!! इसके पीछे कलियुग के तीस वर्ष और निकल जाने पर कार्तिक शुक्ल नवमी से सनकादि ने कथा आरम्भ की थी !
!!९६!! निष्पाप शौनक जी आपने जो कुछ पूछा था उसका उत्तर मैंने आपको दे दिया इस कलियुग में भागवत की कथा भवरोग की रामबाण औषध है !
!!९७!! संत जन आप लोग आदर पूर्वक इस कथामृत का पान कीजिए यह श्री कृष्ण को अत्यन्त प्रिय सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला मुक्ति का एकमात्र कारण और भक्ति को बढ़ाने वाला है लोक में अन्य कल्याणकारी साधनों का विचार करने और तीर्थों का सेवन करने से क्या होगा
!!९८!! अपने दूत को हाथ में पास लिए देखकर यमराज उसके कान में कहते हैं देखो जो भगवान की कथा वार्ता में मत्त हो रहे हों उनसे दूर रहना मैं औरों को ही दण्ड देने की शक्ति रखता हूं वैष्णवों को नहीं !
!!९९!! इस असार संसार में विषय रूप विष की आसक्ति के कारण व्याकुल बुद्धि वाले पुरुषों अपने कल्याण के उद्देश्य से आधे क्षण के लिए भी इस शुक कथा रूप अनुपम सुधा का पान करो प्यारे भाइयों निन्दित कथाओं से युक्त कुपथ में व्यर्थ ही क्यों भटक रहे हो इस कथा के कान में प्रवेश करते ही मुक्ति हो जाती है इस बात के साक्षी राजा परीक्षित हैं !
!!१००!! श्री सुकदेव जी ने प्रेम रस के प्रवाह में स्थित होकर इस कथा को कहा था इसका जिसके कण्ठ से सम्बन्ध हो जाता है वह वैकुण्ठ का स्वामी बन जाता है !
!!१०१!! शौनक जी मैंने अनेक शास्त्रों को देखकर आपको यह परम गोप्य रहस्य अभी-अभी सुनाया है सब शास्त्रों के सिद्धांतों का यही निचोड़ है संसार में इस शुकशास्त्र से अधिक पवित्र और कोई वस्तु नहीं है अतः आप लोग परमानन्द की प्राप्ति के लिए इस द्वादश स्कंध रूप रस का पान करें !
!!१०२!! जो पुरुष नियम पूर्वक इस कथा का भक्ति भाव से श्रवण करता है और जो शुद्धान्त: करण भगवभ्दक्तों के सामने इसे सुनाता है वे दोनों ही विधि का पूरा पूरा पालन करने के कारण इसका यथार्थ फल पाते हैं उनके लिए त्रिलोकी में कुछ भी असाध्य नहीं रह जाता !
!!१०३!! जिससे इस जगत् की सृष्टि स्थिति और प्रलय होते हैं क्योंकि वह सभी सद्रूप पदार्थों में अनुगत है और असत पदार्थों से पृथक है जड़ नहीं चेतन है परतन्त्र नहीं स्वयं प्रकाश है जो ब्रह्मा अथवा हिरण्यगर्भ नहीं प्रत्युत उन्हें अपने संकल्प से जिसने उस वेद ज्ञान का दान किया है जिस के सम्बन्ध में बड़े-बड़े विद्वान भी मोहित हो जाते हैं जैसे तेजोमय सूर्य रश्मि यों में जल का जल में स्थल का और स्थल में जल का भ्रम होता है वैसे ही जिसमें यह त्रिगुणमयी जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति रूपा सृष्टि मिथ्या होने पर भी अनुष्ठान सत्ता से सत्यवत प्रतीत हो रही है उस अपनी स्वयं प्रकाश ज्योति से सर्वदा और सर्वथा माया और माया कार्य से पूर्णत: मुक्त रहने वाले परम सत्यरूप परमात्मा का हम ध्यान करते हैं !
!!१!! महामुनि व्यास देव के द्वारा निर्मित इस श्रीमद्भागवत महापुराण में मोक्ष पर्यंन्त फल की कामना से रहित परम धर्म का निरूपण हुआ है इसमें शुद्धान्त: करण सत्पुरुषों के जानने योग्य उस वास्तविक वस्तु परमात्मा का निरूपण हुआ है जो तीनों तापों का जड़से नाश करने वाली और परम कल्याण देने वाली है अब और किसी साधन या शास्त्र से क्या प्रयोजन जिस समय भी सुकृति पुरुष के श्रवण की इच्छा करते हैं ईश्वर उसी समय अविलम्ब उनके हृदय में आकर बन्दी बन जाता है!
!!२!! रस के मर्मज्ञ भक्तजन यह श्रीमद्भागवत वेदरूप कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है श्री सुकदेव रूप तोते के मुख का सम्बन्ध हो जाने से यह परमानन्द मयी सुधा से परिपूर्ण हो गया है इस फल में छिलका गुठली आदि त्याज्य अंश तनिक भी नहीं है यह मूर्तिमान रस है जब तक शरीर में चेतना रहे तब तक इस दिव्य भगवद्रस का निरन्तर बार-बार पान करते रहो यह पृथ्वी पर ही सुलभ है !
!!३!! एक बार भगवान विष्णु एवं देवताओं के परम पुण्य मय क्षेत्र नैमिषारण्य में सनकादि ऋषियों ने भगवत्प्राप्ति की इच्छा से सहस्र वर्षों में पूरे होने वाले एक महान यज्ञ का अनुष्ठान किया !
!!४!! एक दिन उन लोगों ने प्रातः काल अग्निहोत्र आदि नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर सूत जी का पूजन किया और उन्हें ऊंचे आसन पर बैठाकर बड़े आदर से यह प्रश्न किया !
!!५!! ऋषियों ने कहा____ सूत जी आप निष्पाप है आपने समस्त इतिहास पुराण और धर्म शास्त्रों का विधि पूर्वक अध्ययन किया है तथा उनकी भली-भांति व्याख्या भी की है !
!!६!! वेद वेत्ताओं में श्रेष्ठ भगवान बाद रायण ने एवं भगवान के सगुण निर्गुण रूप को जानने वाले दूसरे मुनियों ने जो कुछ जाना है उन्हें जिन विषयों का ज्ञान है वह सब आप वास्तविक रूप में जानते हैं आपका हृदय बड़ा ही सरल और शुद्ध है इसी से आप उनकी कृपा और अनुग्रह के पात्र हुए हैं गुरुजन अपने प्रेमी शिष्य को गुप्त से गुप्त बात भी बता दिया करते हैं !
!!७-८!! आयुष्मन आप कृपा करके यह बतलाइए कि उन सब शास्त्रों पुराणों और गुरुजनों के उपदेशों में कलियुगी जीवों के परम कल्याण का सहज साधना आपने क्या निश्चय किया है !
!!९!! आप संत समाज की भूषण है इस कलियुग में प्रायः लोगों की आयु कम हो गई है साधन करने में लोगों की रुचि और प्रवृत्ति भी नहीं है लोग आलसी हो गए हैं उनका भाग्य तो मन्द है ही समझ भी थोड़ी है इसके साथ ही वे नाना प्रकार की विघ्न बाधाओं से घिरे हुए भी रहते हैं !
!!१०!! शास्त्र भी बहुत से हैं परन्तु उनमें एक निश्चित साधन का नहीं अनेक प्रकार के कर्मों का वर्णन है साथ ही वे इतने बड़े हैं कि उनका एक अंश सुनना भी कठिन है आप परोपकारी हैं अपनी बुद्धि से उनका सार निकालकर प्राणियों के परम कल्याण के लिए हम श्रद्धालुओं को सुनाइए जिससे हमारे अन्तःकरण की शुद्धि प्राप्त हो !
!!११!! प्यारे सूत जी आप का कल्याण हो आप तो जानते ही हैं कि यदुवंशियों के रक्षक भक्तवत्सल भगवान श्री कृष्ण वसुदेव की धर्मपत्नी देवकी के गर्भ से क्या करने की इच्छा से अवतीर्ण हुए थे !
!!१२!! हम उसे सुनना चाहते हैं आप कृपा करके हमारे लिए उसका वर्णन कीजिए क्योंकि भगवान का अवतार जीवों के परम कल्याण और उनकी भगवत्प्रेममयी समृद्धि के लिए ही होता है !
!!१३!! यह जीव जन्म मृत्यु के घोर चक्र में पड़ा हुआ है इस स्थिति में भी यदि वह कभी भगवान के मंगलमय नाम का उच्चारण कर ले तो उसी क्षण उसमें मुक्त हो जाए क्योंकि स्वयं भय भी भगवान से डरता रहता है !
!!१४!! सूत जी परम विरक्त और परम शान्त मुनि जन भगवान के श्री चरणों की शरण में ही रहते हैं अतएव उनके स्पर्श मात्र से संसार के जीव तुरन्त पवित्र हो जाते हैं इधर गग्ड़ा जी के जल का बहुत दिनों तक सेवन किया जाए तब कहीं पवित्रता प्राप्त होती है !
!!१५!! ऐसे पुण्यात्मा भक्त जिस की लीलाओं का गान करते रहते हैं उन भगवान का कलि मल्हारी पवित्र यस भला आत्मशुद्ध की इच्छा वाला ऐसा कौन मनुष्य होगा जो श्रवण न करें !
0 Comments