६१!! गोकर्ण जी____इस लोक में सप्ताहा श्रवण करने से भगवान की शीघ्र ही प्राप्ति हो सकती है अतः सब प्रकार के दोषों की निवृत्ति के लिये एकमात्र यही साधन है !
!!६२!! जो लोग भागवत की कथा से वंचित है वे तो जल में बुदबुदे और जीवों में मच्छरों के समान केवल मरने के लिए ही पैदा होते हैं !
!! ६३!! भला जिसके प्रभाव से जड़ और सूखे हुए बांस की गांठे फट सकती हैं उस भागवत कथा का श्रवण करने से चित्त की गांठों का खुल जाना कौन बड़ी बात है
!!६४!! सप्ताह श्रवण करने से मनुष्य के हृदय की गांठ खुल जाती है उसके समस्त संशय छिन्न-भिन्न हो जाते हैं और सारे कर्म क्षीण हो जाते हैं !
!!६५!! यह भागवत कथा रूप तीर्थ संसार के कीचड़ को धोने में बड़ा ही पटु है विद्वानों का कथन है कि जब यह हृदय में स्थित हो जाता है तब मनुष्य की मुक्ति निश्चित ही समझनी चाहिए !
!!६६!! जिस समय धुंन्धुकारी ये सब बातें कर रहा था जिसके लिए वैकुण्ठ वासी पार्षदों के सहित एक विमान उतरा उस से सब ओर मण्डला कार प्रकाश फैल रहा था
!!६७!! सब लोगों के सामने ही धुन्धुकारी उस विमान पर चढ़ गया तब उस विमान पर आये हुए पार्षदों को देखकर उनसे गोकर्ण ने यह बात कही !
!!६८!! गोकर्ण ने पूछा ____भगवान के प्रिय पार्षदो यहां हमारे अनेकों शुद्ध हृदय श्रोता गण है उन सब के लिये आप लोग एक साथ बहुत से विमान क्यों नहीं लाए हम देखते हैं कि यहां सभी ने समान रूप से कथा सुनी है फिर फल में इस प्रकार का भेद क्यों हुआ यह बताइये
!!६९-७०!! भगवान के सेवकों ने कहा___ हे मानद इस फल भेद का कारण इनके श्रवण का भेद ही है यह ठीक है कि श्रवण तो सब ने समान रूप से ही किया है किन्तु इसके जैसा मनन नहीं किया इसी से एक साथ भजन करने पर भी उसके फल में भेद रहा!
!!७१!! इस प्रेत ने सात दिनों तक निराहार रहकर श्रवण किया था तथा सुने हुए विषय का स्थिर चित्त से यह खूब मनन निदिध्यासन भी करता रहता था !
!!७२!! जो ज्ञान दृढ़ नहीं होता वह व्यर्थ हो जाता है इसी प्रकार ध्यान न देने से श्रवण का संदेह से मन्त्र का और चित्त के इधर-उधर भटकते रहने से जप का भी कोई फल नहीं होता !
!!७३!! वैष्ण वहीन देश अपात्र को कराया हुआ श्राद्ध का भोजन अश्रोत्रिय को दिया हुआ दान एवं आचारहीन कुल इन सब का नाश हो जाता है !
!!७४!! गुरु वचनों में विश्वास दीनता का भाव मन के दोषों पर विजय और कथा में चित्त की एकाग्रता इत्यादि नियमों का यदि पालन किया जाय तो श्रवण का यथार्थ फल मिलता है यदि ये श्रोता फिर से श्री मद्भागवत की कथा सुनें तो निश्चय ही सब को वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी !
!!७५-७६!! और गोकर्ण जी आपको तो भगवान स्वयं आकर गोलोकधाम में ले जाएंगे यों कहकर वे सब पार्षद हरिकीर्तन करते वैकुण्ठ लोक को चले गए !
!!७७!! श्रावण मास में गोकर्ण जी ने फिर उसी प्रकार सप्ताह क्रम से कथा कहीं और उन श्रोताओं ने उसे फिर सुना !
!!७८!! नारद जी इस कथा की समाप्ति पर जो कुछ हुआ वह सुनिए !
!!७९!! वहां भक्तों से भरे हुए विमानों के साथ भगवान प्रकट हुए सब ओर से खूब जय जय कार और नमस्कार की ध्वनिया होने लगीं !
!!८०!! भगवान स्वयं हर्षित होकर अपने पाञ्चजन्य शख्ड़ की ध्वनि करने लगे और उन्होंने गोकर्ण को हृदय से लगाकर अपने ही समान बना लिया !
!!८१!! उन्होंने क्षण भर में ही अन्य सब श्रोताओं को भी मेघ के समान श्याम वर्ण रेशमी पीताम्बर धारी तथा किरीट और कुण्डलदि से विभूषित कर दिया !
!!८२!! उस गांव में कुत्ते और चाण्डाल पर्यन्त जितने भी जीव थे वे सभी गोकर्ण जी की कृपा से विमानों पर चढ़ा लिए गए
!!८३!! तथा जहां योगिजन जाते हैं उस भगवध्दाम में वे भेज दिए गए इस प्रकार भक्तवत्सल भगवान श्री कृष्ण कथा श्रवण से प्रसन्न होकर गोकर्ण जी को साथ ले अपने ग्वाल बालों के प्रिय गोलोकधाम में चले गए !
!!८४!! पूर्व काल में जैसे अयोध्यावासी भगवान श्री राम के साथ साकेत धाम सिधारे थे उसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण उन सबको योगिदुर्लभ गोलोकधाम को ले गए !!
!!८५!! जिस लोक में सूर्य चन्द्रमा और सिद्धों की भी कभी गति नहीं हो सकती उसमें वे श्रीमद्भागवत श्रवण करने से चले गए !
!!८६!! नारद जी सप्ताह यज्ञ के द्वारा कथा श्रवण करने से जैसा उज्ज्वल फल संचित होता है उसके विषय में हम आपसे क्या कहें अजी जिन्होंने अपने कर्णपुट से गोकर्ण जी की कथा के एक अक्षर का भी पान किया था वे फिर माता के गर्भ में नहीं आए !
!!८७!! जिस गति को लोग वायु जल या पत्ते खाकर शरीर सुखाने से बहुत काल तक घोर तपस्या करने से और योगाभ्यास से भी नहीं पा सकते उसे वे सप्ताह श्रवण से सहज में ही प्राप्त कर लेते हैं !
!!८८!! इस परम पवित्र इतिहास का पाठ चित्रकूट पर विराजमान मुनीश्वर शाण्डिल्य भी ब्रह्मानन्द में मग्र होकर करते रहते हैं !
!! ८९!! यह कथा बड़ी ही पवित्र है एक बार के श्रवण से ही समस्त पाप राशि को भस्म कर देती है यदि इसका श्राद्ध के समय पाठ किया जाए तो इससे पितृगण को बड़ी तृप्ति होती है और नित्य पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है !
!!९०!! श्रीसनकादि कहते हैं____ नारद जी अब हम आपको सप्ताह श्रवण की विधि बताते हैं यह विधि प्रायः लोगों की सहायता और धन से साध्य कही गयी हैं!
!!१!! पहले तो यन्त पूर्वक ज्योतिषी को बुलाकर मुहूर्त्त पूछना चाहिए तथा विवाह के लिए जिस प्रकार धन का प्रबन्ध किया जाता है उस प्रकार ही धन की व्यवस्था इसके लिए करनी चाहिए !
!! २!! कथा आरम्भ करने में भाद्रपद आश्विन कार्तिक मार्गशीर्ष आषाढ़ और श्रावण ये छः महीने श्रोताओं के लिए मोक्ष की प्राप्ति के कारण है !
!!३!! देवर्षे इन महीनों में भी भद्रा व्यतीपात आदि कुयोगों को सर्वथा त्याग देना चाहिए तथा दूसरे लोग जो उत्साही हों उन्हें अपना सहायक बना लेना चाहिए !
!!४!! फिर प्रयत्न करके देश देशान्तरों में यह संवाद भेजना चाहिए कि यहां कथा होगी सब लोगों को सपरिवार पधार ना चाहिए !
!!५!! स्त्री और शूद्रदि भगवत्कथा एवं संकीर्तन से दूर पड़ गए हैं उनको भी सूचना हो जाए ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए !
!!६!! देश देश में जो विरक्त वैष्णव और हरि कीर्तन के प्रेमी हो उनके पास निमन्त्रण पत्र अवश्य भेजें उसे लिखने की विधि इस प्रकार बताई गई है !
!!७!! महानुभावों यहां सात दिन तक सत्पुरुषों का बड़ा दुर्लभ समागम रहेगा और अपूर्व रसमयी श्रीमद्भागवत की कथा होगी !
!!८!! आप लोग भगवद्रस के रसिक हैं अतः श्री भागवता मृत का पान करने के लिए प्रेम पूर्वक शीघ्र ही पधारने की कृपा करें !
!! ९!! यदि आपको विशेष अवकाश न हो तो भी एक दिन के लिए तो अवश्य ही कृपा करनी चाहिए क्योंकि यहां का तो एक क्षण भी अत्यन्त दुर्लभ है !
!! १०!! इस प्रकार विनय पूर्वक उन्हें निमंत्रित करें और जो लोग आए हैं उनके लिए यथोचित निवास स्थान का प्रबन्ध करें !
!!११!! कथा का श्रवण किसी तीर्थ में वन में अथवा अपने घर पर भी अच्छा माना गया है जहां लम्बा चौड़ा मैदान हो वही कथा स्थल रखना चाहिए !
!!१२!! भूमि का शोधन मार्जन और लेपन करके रंग बिरंगी धातुओं से चौक पुरे घर की सारी सामग्री उठाकर एक कोने में रख दें !
!!१३!! पांच दिन पहले से ही यन्त्रपूर्वक बहुत से बिछाने के वस्त्र एकत्र कर ले तथा केलेके खंभों से सुशोभित एक ऊंचा मण्डप तैयार कराये !
!!१४!! उसे सब ओर फल पुष्प पत्र और चंदोवे से अलंकृत करे तथा चारों ओर झंडियां लगाकर तरह-तरह के सामानों से सजा दें !
!!१५!! उस मण्डप में कुछ ऊंचाई पर सात विशाल लोकों की कल्पना करें और उसमें विरक्त ब्राह्मणों को बुला बुला कर बैठाये है !
!!१६!! आगे की ओर उनके लिए वहां यथोचित आसन तैयार रखे इनके पीछे वक्ता के लिए भी एक दिव्य सिंहासन का प्रबन्ध करें !
!!१७!! यदि वक्ता का मुख उत्तर की ओर रहे तो श्रोता पुर्वाभिमुख होकर बैठे और यदि वक्ता पूर्वाभिमुख रहे तो श्रोता को उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिये !
!!१८!! अथवा वक्ता और श्रोता को पूर्व मुख होकर बैठना चाहिए देश काल आदि को जानने वाले महानुभावों ने श्रोता के लिए ऐसा ही नियम बताया है !
!!१९!! जो वेद शास्त्र की स्पष्ट व्याख्या करने में समर्थ हो तरह-तरह के दृष्टान्त दे सकता हो तथा विवेकी और अत्यन्त नि:स्पृह हो ऐसे विरक्त और विष्णु भक्त ब्राह्मण को वक्ता बनाना चाहिए !
!!२०!! श्रीमद्भागवत के प्रवचन में ऐसे लोगों को नियुक्त नहीं करना चाहिए जो पण्डित होने पर भी अनेक धर्मों के चक्कर में पड़े हुए स्त्री लम्पट एवं पाखण्ड के प्रचारक हों !
!!२१!! वक्ता के पास ही उसकी सहायता के लिए एक वैसा ही विद्वान और स्थापित करना चाहिए वह भी सब प्रकार के संशयों की निवृत्ति करने में समर्थ और लोगों को समझाने में कुशल हो !
!!२२!! कथा प्रारम्भ के दिन से एक दिन पूर्व व्रत ग्रहण करने के लिए वक्ता को क्षौर करा लेना चाहिए तथा अरूणोदय के समय शौच से निवृत्त होकर अच्छी तरह स्नान करें !
!!२३!! और संध्यादि अपने नित्य कर्मों को संक्षेप से समाप्त करके कथा के विघों की निवृत्ति के लिए गणेश जी का पूजन करें !
!!२४!! तदनन्तर पितृगण का तर्पण कर पूर्व पापों की शुद्धि के लिए प्रायाश्रित्त करें और एक मण्डल बनाकर उसमें श्रीहरि को स्थापित करे !
!!७२५!! फिर भगवान श्री कृष्ण को लक्ष्य करके मन्त्रोच्चारण पूर्वक क्रमशः षोडशो पचारविधि से पूजन करें और उसके पश्चात प्रदक्षिणा तथा नमस्कारादि कर इस प्रकार स्तुति करें !
!!२६!! करुणानिधान मैं संसार सागर में डूबा हुआ और बड़ा दिन है कर्मों के मोहरूपी ग्राहने मुझे पकड़ रखा है आप इस संसार सागर से मेरा उद्धार कीजिए !
!!२७!! इसके पश्चात धूप दीप आदि सामग्रियों से श्रीमद्भागवत की भी बड़े उत्साह और प्रीति पूर्वक विधि विधान से पूजा करें !
!!२८!! फिर पुस्तक के आगे नारियल रखकर नमस्कार करे और प्रसन्नाचित्त से इस प्रकार स्तुति करें !
!!२९!! श्रीमद्भागवत के रूप में आप साक्षात श्री कृष्ण चंद्र ही विराजमान हैं नाथ मैंने भवसागर से छुटकारा पाने के लिए आप की शरण ली है !
!!३०!! मेरा यह मनोरथ आप बिना किसी विघ्न-बाधा के सांडो़पाड़ पूरा करें केशव मैं आपका दास हूं !
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