!!६!! सनकादिक ने कहा ____वहां आप बिना किसी विशेष प्रयत्न के ही ज्ञान यज्ञ आरम्भ कर दीजिये उस स्थान पर कथा में अपूर्ण रस का उदय होगा!
!!७!! भक्ति भी अपनी आंखों के ही सामने निर्बल और जरा जीर्ण अवस्था में पड़े हुए ज्ञान और वैराग्य को साथ लेकर वहां आ जायगी!
!!८!! क्योंकि जहां भी श्रीमद्भागवत की कथा होती है वहां ये भक्ति आदि अपने आप पहुंच जाते हैं वहां कानों में कथा के शब्द पड़ने से ये तीनों तरुण हो जायंगे हैं!
!!९!! सूत जी कहते हैं___इस प्रकार कहकर नारद जी के साथ सनकादि भी श्रीमद्भागवत थामृत का पान करने के लिये वहां से तुरंत गग्डां तट पर चले आये!.
!!१०!! जिस समय वे तट पर पहुंचे भूलोक देव लोग और ब्रह्म लोग सभी जगह इस कथा का हल्ला हो गया!
!!११!! जो जो भगवत्कथा के रसिक विष्णु भक्त थे वे सभी श्रीमद्भागवतामृतका पान करने के लिये सब से आगे दौड़ दौड़कर आने लगे !
!!१२!! भृगु वशिष्ठ च्यवन गौतम मेधातिथि देवल देवरात परशुराम विश्वामित्र शाकल मार्कंण्डेय दत्तात्रेय पीप्पलाद योगेश्वर व्यास और पराशर छायाशुक जाजली और जन्हु आदि सभी प्रधान प्रधान मुनिगण अपने अपने पुत्र शिष्य और रित्रयों समेत बड़े प्रेम से वहां आते!
!!१३-१४!! इनके सिवा वेद वेदान्त (उपनिषद) मन्त्र तन्त्र सत्रह पुराण और छहों शास्त्र भी मूर्तिमान होकर वहां उपस्थित हुए!
!!१५!! गग्डांक आदि नदियां पुष्कर आदि सरोवर कुरुक्षेत्र आदि समस्त क्षेत्र सारी दिशाएं दण्डक आदि वन हिमालय आदि पर्वत तथा देव गंन्धर्व और दानव आदि सभी कथा सुनने चले आये जो लोग अपने गौरव के कारण नहीं आये महर्षि भृगु उन्हें समझा बुझा कर ले आये !
!!१६-१७!! तब कथा सुनाने के लिए दीक्षित होकर श्री कृष्ण परा यण सनकादि नारद जी के दिये हुए श्रेष्ठ आसन पर विराज मान हुए उस समय सभी श्रोताओं ने उनकी वंन्दना की !
!!१८!! श्रोताओं में वैष्णव विरक्त संन्यासी और ब्रह्मचारी लोग आने आएंगे बैठे और उन सबके आगे नारद जी विराजमान हुए!
!!११!! एक ओर ऋषिगण एक ओर देवता एक ओर वेद और उपनिषदादि तथा एक ओर तीर्थ बैठे और दूसरी ओर रित्रयां बैठी !
!!२०!! उस समय सब ओर जय जयकार नमस्कार और शडोंख्का शब्द होने लगा और अबीर गुलाल खील एवं फूलों की खूब वर्षा होने लगी!
!!२१!! कोई-कोई देव श्रेष्ठ तो विमानों पर चढ़कर वहां बैठे हुए सब लोगों पर कल्पवृक्ष के पुष्पों की वर्षा करने लगे !
!!२२!! सूत जी कहते हैं ___इस प्रकार पूजा समाप्त होने पर जब सब लोग एकाग्र चित्त हो गये तब सनकादि ऋषि महात्मा नारद को श्रीमद्भागवत का माहात्म्य स्पष्ट करके सुनाने लगे!
!!२३!!सनकादिक ने कहा ___ अब हम आपको इस भागवत शास्त्र की महिमा सुनाते हैं इसके श्रवण मात्र से मुक्ति हाथ लग जाती है!
!!२४!! श्रीमद्भागवत की कथा का सदा सर्वदा सेवन आस्वादन करना चाहिये इसके श्रवण मात्र से श्री हरि ह्रदय में आ विराजते हैं!
!!२५!! इस ग्रन्थ में अठारह हजार श्लोक और बारह स्कन्ध है तथा श्रीशुकदेव और राजा परीक्षित का संवाद है आप यह भगवतशास्त्र ध्यान देकर सुनिये!
!!२६!! यह जीव तभी तक अज्ञान वस इस संसार चक्र में भटकता है जब तक क्षणभर के लिये भी कानों में इस शुकशास्त्र की कथा नहीं पड़ती !
!!२७!! बहुत से शास्त्र और पुराण सुनने से क्या लाभ है इससे तो व्यर्थ का भ्रम बढ़ता है मुक्ति देने के लिये तो एकमात्र भागवत शास्त्र ही गरज रहा है !
!!२८!! जिस घर में नित्य प्रति श्रीमद्भागवत की कथा होती है वह तीर्थरूप हो जाता है और जो लोग उसमे रहते हैं उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं!
!!२१!! हजारों अव्श्रमेध और सैकड़ों वाजपेय यज्ञ इस शुक शास्त्र की कथा का सोलहवां अंश भी नहीं हो सकते !
!!३०!! तपोधनों जब तक लोग अच्छी तरह श्रीमद्भागवत का श्रवण नहीं करते तभी तक उनके शरीर में पाप निवास करते हैं!
!!३१!! फल की दृष्टि से इस शुकशास्त्र कथा की समता गग्डां, गया, काशी, पुष्कर ,या प्रयाग, कोई तीर्थ भी नहीं कर सकता !
!!३२!! यदि आपको परम गति की इच्छा है तो अपने मुख से ही श्रीमद्भागवत के आधे अथवा चौथाई श्लोक का भी नित्य नीयमपूर्वक पाठ कीजिये!
!!३३!!🕉️कार, गायत्री, पुरुषसूक्त तीनों वेद श्रीमद्भागवत 🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय__या द्वादशाक्षर मंन्त्र बाहर मूर्तियों वाले सूर्य भगवान ,प्रयाग, संवत्सररूप काल ,ब्राह्मण ,अग्रिहोत्र ,गौ, द्वादशी तिथि तुलसी वसन्त ऋतु और भगवान पुरुषोत्तम इन सब में बुद्धिमान लोग वस्तुत: कोई अन्तर नहीं मानते!
!!३४-३६!! जो पुरुष अहर्निश अर्थसहित श्रीमद्भागवत शास्त्र का पाठ करता है उसके करोड़ों जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है!
!!३७!!जो पुरुष नित्यप्रति भागवत का आधा या चौथाई भी पढ़ता है उसे राजसूय और अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है!
!!३८!! नित्य भागवत का पाठ करना भगवान का चिन्तन करना तुलसी को सींचना और गौ की सेवा करना ये चारों समान है !
!!३९!! जो पुरुष अन्त समय में श्रीमद्भागवत का वाक्य सुन लेता है उस पर प्रसन्न होकर भगवान उसे वैकुण्ठधाम देते हैं!
!!४०!! जो पुरुष इस से सोने के सिंहासन पर रखकर विष्णु भक्त को दान करता है वह अवश्य ही भगवान का सायुज्य प्राप्त करता है!
!!४९!! जिस दृष्टि ने अपनी सारी आयु में चित्तन को एकाग्र करके श्रीमद्भागवतामृत का थोड़ा सा भी रसास्वादन नहीं किया उसेने तो अपना सारा जन्म चाण्डाल और गधेके समान व्यर्थ ही गंवा दिया वह तो अपनी मांता को प्रसव पीड़ा पहुंचाने के लिये ही उत्पन्न हुआ !
!!४२!! जिसने इस शुकशास्त्र के थोड़े से भी वचन नहीं सुने वह पापात्मा तो जीता हुआ ही मुर्दे के समान है पृथ्वी के भारस्वरूप उस पशुतुल्य मनुष्य को धिक्कार है यों स्वर्गलोक में देवताओं में प्रधान इन्द्रादिकहा करते हैं!
!!४३!! संसार में श्रीमद्भागवत की कथा का मिलना अवश्य ही कठिन है जब करोड़ों जन्मों का पुण्य होता है तभी इसकी प्राप्ति होती है!
!!४४!! नारद जी आप बड़े ही बुद्धिमान और योगनिधि है आप प्रयत्न पूर्वक कथा का श्रवण कीजिये इस सुनने के लिये दिनों का कोई नियम नहीं है इसे तो सर्वदा ही सुनना अच्छा है !
!!४५!! इसे तत्य भाषण और ब्रह्मचर्यपालन पूर्वक सर्वदा ही सुनना श्रेष्ठ माना गया है किन्तु कलियुग में ऐसा होना
कठिन है इसलिये इसकी शुकदेव जीने जो विशेष विधि बतायी है वह जान लेनी चाहिये !
!!४६!! कलयुग में बहुत दिनों तक चित्तकी वृत्तियों को वश में रखना नियमों में बंधे रहना और किसी पुण्यकार्य के लिये दीक्षित रहना कठिन है इसलिये सप्ताह श्रवण की विधि है!
!!४७!! श्रद्धा पूर्वक कभी भी श्रवण करने से अथवा माघ मास में श्रवण करने से जो फल होता है वही फल श्री शुकदेव जी ने सप्ताह श्रवण में निर्धारित किया है!
!!४८!! मन के असंयम रोगों की बहुलता और आयु की अल्पता के कारण तथा कलियुग में अनेकों दोषों की सम्भावना से ही सप्ताह श्रवण विधान किया गया है !
!!४९!! जो फल तप योग और समाधि से भी प्राप्त नहीं हो सकता वह सर्वादा दंड रूप में में सप्ताह श्रवण से सहज में ही मिल जाता है !
!!५०!! सप्ताह श्रवण यज्ञ से बढ़कर है व्रत से बढ़कर है तप से कहीं बढ़कर है तीर्थ सेवन से तो सदा ही बड़ा है योग से बढ़कर है यहां तक कि ध्यान और ज्ञान से भी बढ़कर है अजी की इसकी विशेषता का कहां तक वर्णन करें यह तो सभी से बढ़ चढ़कर है!
!!५१-५२!! शौनक जी ने पूछा___सूत जी यह तो आपने बड़े आश्चर्य की बात कही अवश्य ही यह भागवत पुराण योगवेत्ता ब्रह्मा जी के भी आदिकारण श्री नारायण का निरूपण करता है परन्तु यह मोक्ष की प्राप्ति में ज्ञानादि सभी साधनों का तिरस्कार करके इस युग में उनसे भी कैसे बढ़ गया!
!!५३!! सूत जी ने कहा ___शौनक जी जब भगवान श्री कृष्ण इस धरा धाम को छोड़कर अपने नित्य धाम को जाने लगे तब उनके मुखारविंन्द से एकादश स्कन्धका ज्ञानोपदेश सुनकर भी उद्धव जी ने पूछा !
!!५४!! उद्धव जी बोले____गोविन्द अब आप तो अपने भक्तों का कार्य करके परमधाम को पधारना चाहते हैं किन्तु मेरे मन में एक बड़ी चिन्ता है उसे सुनकर आप मुझे शान्त कीजिये!
!!५५!! अब घोर कलीकाल आया ही समझिये इसलिये संसार में फिर अनेकों दुष्ट प्रकट हो जायेंगे उसके संसर्ग से जब अनेकों सत्पुरुष भी उग्र प्राकृति के हो जायंगे तब उनके भार से दब कर यह गोरूपिणी पृथ्वी किसकी शरण में जायगी कमलनयन मुझे तो आपको छोड़कर इसकी रक्षा करने वाला कोई दूसरा नहीं दिखायी देता!
!!५६-५७!! इसलिये भक्तवत्सल आप साधुओं पर कृपा करके यहां से मत जाइये भगवन आपने निराकार और चिन्मात्र होकर भी भक्तों के लिये ही तो यह सगुण रूप धारण किया है!
!!५८!! फिर भला आपका वियोग होने पर वे भक्तजन पृथ्वी पर कैसे रह सकेंगे निर्गुणो पासना में तो बड़ा कष्ट है इसीलिये कुछ और विचार कीजिये!
!!५९!! प्रभास क्षेत्र में उद्धव जी के ये वचन सुनकर भगवान सोचने लगे कि भक्तों के अवलम्ब के लिये मुझे क्या व्यवस्था करनी चाहिये!
!!६०!! शौनक जी तब भगवान ने अपनी सारी शक्ति भागवत में रख दी; वे अन्तर्धान होकर इस भागवत समुद्र में प्रवेश कर गये!
!!६१!! इसलिये यह भगवान की साक्षात शब्दमयी मूर्ति है इसके सेवन श्रवण पाठ अथवा दर्शन से ही मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं!
!!६२!! इसी से इसका सप्ताह श्रवण सबसे बढ़कर माना गया है और कलियुग में तो अन्य सब संसाधनों को छोड़कर यही प्रधान धर्म बताया गया है!
!!६३!! कलिकाल में यही ऐसा धर्म है जो दुःख दरिद्रता दुर्भाग्य और पापों की सफाई कर देता है तथा काम क्रोधादि शत्रुओं पर विजय दिलाता है!
!!६४!! अन्यथा भगवान की इस माया से पीछा छुड़ाना देवताओं के लिए भी कठिन है मनुष्य तो इसे छोड़ ही कैसे सकते हैं अतः इससे छूटने के लिये भी सप्ताह श्रवण विधान किया गया है!
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