भागवत -पुराण

भागवत -पुराण!! २८!!_ सूत जी कहते हैं__इस प्रकार भूख प्यास के मारे अत्यंत दुर्लभ होने के कारण उन्हें फिर सोते देख नारद जी को बड़ी चिंता हुई और वे सोचने लगे अब मुझे क्या करना चाहिये!
श्री-मद्भागवत


!!२९!! इनकी यह नींद _और इससे भी बढ़कर इनकी वृद्धावस्था कैसे दूर हो शौनक जी इस प्रकार चिंता करने करने वे भगवान का स्मरण करने लगे


!!!३०!! उसी समय यह आकाशवाणी हुई कि मुने खेद मत करो तुम्हारा यह उद्योग नि: संदेह सफल होगा!


!!३१!! देवर्षे इन के लिए तुम एक सत्कर्म करो वह कर्म तुम्हें संत शिरोमणि महानुभाव बतायेगे!


!!!३२!! उस सत्कर्म का अनुष्ठान करते ही क्षण भर में  इनकी नींद और वृद्धावस्था चली जायेगी तथा सर्वत्र भक्ति प्रसार होगा!


!!!३३!! यह आकाशवाणी वहां सभी को साफ-साफ सुनाई दी इनमें से नारद जी को बड़ा विस्मय  हुआ और वे कहने लगे मुझे  तो इस का कुछ आशय  समझ में नहीं आया!


!!!३४!!नारद जी बोले___आकाशवाणी ने भी गुप्त रूप में ही बात कही है यह नहीं बताया कि वह कौन सा साधन किया जाय जिससे इनका कार्य सिद्धि हो!


!!३५!! वे संतन जाने कहां मिलेंगे और किस प्रकार उस साधनों को बताएयेंगे आकाशवाणी ने जो कुछ कहा है उसके अनुसार मुझे क्या करना चाहिए!


!!३६!! सूत जी कहते हैं___शौनक जी तब ज्ञान वैराग्य दोनों को वहीं छोड़कर नारद मुनि वहां से चल पड़े और प्रत्येक तीर्थ में जा जाकर मार्ग में मिलने वाले मुनीश्वरों से वह साधन पूछने लगे!


!!३७!! उनकी उस बात को सुनते तो सुनते तो सब थे किंतु उसके विषय में कोई कुछ भी निश्चित उत्तर न देता किन्ही ने उसे असाध्य बताया: कोई बोले इसका ठीक-ठीक पता लगना ही कठीन है कोई सुनकर चुप रह गये और कोई कोई तो अपनी अवज्ञा होने के भय से बात को टाल टूल कर खिसक गये !


!!३८!! त्रिलोकी में महान आश्चर्यजनक हाहाकार मच गया लोग आपस में कानाफूसी करने लगे भाई जब वेद ध्वनि वेदान्त घोष और बार-बार गीता पाठ सुनाने पर भी भक्ति ज्ञान और वैराग्य यह तीनों नहीं जगाये  जा सकते तब और कोई उपाय नहीं है!


!!३९-४०!! स्वयं योगि राज नारद को जिसका ज्ञान नहीं है उसे दूर संसारी लोग कैसे बता सकते हैं!


!!४१!! इस प्रकार जिन जिन ऋषियों से इसके विषय में पूछा गया उन्होंने निर्णय करके यही कहा कि यह बात दु :साध्य ही है!


!!४२!! तब नारायण जी बहुत चिन्तातुर हुए और बदरी वन  में आये ज्ञान वैराग्य को जगाने के लिए वहां उन्होंने यह निश्चय किया कि मैं तप करूंगा!


!!४३!! इसी समय उन्होंने अपने सामने करोड़ों सूर्यो के समान तेजस्वी सनकादि मुनीश्वर दिखायी दिये उन्हें देख कर वे मुनि श्रेष्ठ कहने लगे!


!!४४!! नर जी ने कहा___महात्माओं इस समय बड़े भाग्य से मेरा आपलोगों के साथ समागम हुआ है आप मुझ पर कृपा करके शीघ्र ही साधन बताइये!


!!४५!! आप सभी लोग बड़े योगी बुद्धिमान और विद्वान है आप देखने में पांच-पांच वर्ष के बालक से जान पड़ते हैं किंतु है पूर्वजों के भी पूर्वज!


!!४६!! आप लोग सदा वैकुंठ धाम में निवास करते हैं निरंतर हरी कीर्तन में तत्पर रहते हैं भगवल्लिला मृत का रसास्वादन कर सदा उसी में उन्मत्त रहते हैं और एक मात्र भगवत्कथा कि आपके जीवन का आधार है!


!!४७!! हरि: शरणम (भगवान ही हमारे रक्षक हैं )यह वाक्य (मन्त्र) सर्वदा आपके मुख में रहता है इसी से कॉल प्रेरित वृद्धावस्था भी आपको बाधा नहीं पहुंचाती!


!!४८ !! पूर्व काल में आपके भ्रूभग्ड़ मात्र से भगवान विष्णु के द्वार पाल जय और विजय तुरंत पृथ्वी पर गिर गये थे और फिर आपकी ही कृपा से वे पुनः वैकुंठ लोक पहुंच गये!


!!४९!! धन्य है इस समय आपका दर्शन बड़े सौभाग्य से ही हुआ है मैं बहुत दिन हूं और आप लोगों स्वभाव से ही दयालु है इसलिये मुझ पर आपको अवश्य कृपा करनी चाहिये!


!!५०!! बताइये आकाशवाणी ने जिसके विषय में कहा है वह कौन सा साधन है और मुझे किस प्रकार उसका अनुष्ठान करना चाहिये आप इसका विस्तार से वर्णन कीजिये!


!!५१!! भक्ति ज्ञान और वैराग्य को किस प्रकार सुख मिल सकता है और किस तरह इनकी प्रेम पूर्वक सब वर्णों में प्रतिष्ठा की जा सकती है!


!!५२!! सनकादि ने कहां___देवर्षे आप चिन्ता न करें मन में प्रसन्न हो उनके उद्धार का एक सरल उपाय पहले से ही विद्यमान है!


!!५३!! नारद जी आप धन्य हैं आप विरक्तों के शिरोमणि श्री कृष्ण दासों के शाश्वत पथ प्रदर्शक एवं भक्ति योग के भास्कर हैं!


!!५४!! आप भक्ति के लिये जो उद्योग कर रहे हैं यह 

आपके लिये कोई आश्चर्य की बात नहीं समझनी चाहिए भगवान के भक्त के लिये तो भक्ति की सम्यक स्थापना करना सदा उचित ही है 


!!५५!! ऋषि यों ने संसार में अनेकों मार्ग प्रकट किये हैं किंतु वे सभी कष्ट साध्य हैं और परिणाम में प्रायः स्वर्ग की ही प्राप्ति कराने वाले हैं!


!!५६!! अभी तक भगवान की प्राप्ति कराने वाला मार्ग तो गुप्त ही रहा है उसका उपदेश करने वाला पुरुष प्रायः भाग्य से ही मिलता है!


!!५७!! आपको आकाशवाणी ने जिस सत्कर्म का संकेत किया है उसे हम बतलाते हैं आप प्रसन्न और समाहितचित्त होकर सुनिये!


!!५८!! नारद जी द्रव्य यज्ञ तपो यज्ञ योग यज्ञ और स्वाध्याय रूप ज्ञान यज्ञ ये सब तो स्वर्गादि की प्राप्ति कराने वाले कर्म की ही ओर संकेत करते हैं!


!!५९!! पण्डितों ने ज्ञान यज्ञ को ही सत्कर्म (मुक्त दायक कर्म) का सूचक माना है वह श्रीमद्भागवत का पारायण है जिसका गान शुकदि महानुभावों ने किया है!


!!६०!! उसके शब्द सुनने से ही भक्ति ज्ञान और वैराग्य को बढ़ा बल मिलेगा इससे ज्ञान वैराग्य का कष्ट मिट जायगा और भक्ति को आनन्द मिलेगा!


!!६९!! सिंह की गर्जना सुनकर जैसे भेड़िये भाग जाते हैं उसी प्रकार श्रीमद्भागवत की ध्वनि से कलियुग के सारे दोष नष्ट हो जायेंगे!


!!६२!! तब प्रेम रस प्रवाहित करने वाली भक्ति ज्ञान और वैराग्य को साथ लेकर प्रत्येक घर और व्यक्ति के ह्रदय में क्रीड़ा करेगी!


!!६३!! नारद जी ने कहा____मैंने वेद वेदान्त की ध्वनि और गीता पाठ करके उन्हें बहुत जगाया किंतु फिर भी भक्ति ज्ञान और वैराग्य ये तीनों नहीं जगे!


!!६४!! ऐसी स्थिति में श्रीमद्भागवत  सुनाने से वे कैसे जागेंगे क्योंकि उस कथा के प्रत्येक  श्लोक और प्रत्येक पद में भी वेदों का ही सारांश है!


!!६५!! आप लोग शरणागत वत्सल है तथा आपका दर्शन कभी व्यर्थ नहीं होता इसलिये मेरा यही संदेह है दूर कर दीजिये इस कार्य में विलम्ब न कीजिये!


!!६६!! सनकादिने कहा_____श्रीमद्भागवत की कथा वेद और उपनिषदों के सार से बनी है इसीलिये उनसे अलग उनकी फल रूपा होने के कारण वह बड़ी उत्तम जान पड़ती है!


!!६७!! जिस प्रकार रस वृक्ष की जड़ से लेकर शाखा ग्रपर्यन्त रहता है किंतु इस स्थिति में उसका आस्वादन नहीं किया जा सकता वही जब अलग होकर फल के रूप में आ जाता है तब संसार में सभी को प्रिय लगने लगता है !


!!६८!! दूध में घी रहता ही है किंतु उस समय उसका अलग स्वाद नहीं मिलता वही जब उसे से अलग हो जाता है तब देवताओं के लिये भी स्वाद वर्धक हो जाता है!


!!६९!! खांड ईख के ओर छोर और बीच भी  में व्याप्त रहती है तथापि अलग होने पर उसकी कुछ और ही मिठास होती है ऐसी ही यह भागवत की कथा है!


!!७०!! यह भागवत पुराण वेदों के समान हैं श्री व्यास सदेव ने इसे भक्ति ज्ञान और वैराग्य  की स्थापना के लिये प्रकाशित किया है!


!!७१!! पूर्व काल में जिस समय वेद वेदान्त के पार गामी और  गीता की भी रचना करने वाले भगवान व्यासदेव खिन्न होकर अज्ञान समुद्र में गोद खा रहे थे उस समय आप ने ही उन्हें चार श्लोकों में इसका उपदेश किया था उसे सुनते ही उनकी सारी चिंता दूर हो गयी थी!


!!७२-७३!! फिर इसमें आपको आश्चर्य क्यों हो रहा है जो आप हमसे प्रश्न कर रहे हैं आपको उन्हें शोक और दुःख का  विनाश करने वाला श्रीमद्भागवत पुराण ही सुनाना चाहिये!


!!७४!! नारद जी ने कहा____महानुभावो आपका दर्शन जीव के संपूर्ण पापों को तत्काल नष्ट कर  देता है और जो संसार दुःख रूप दावानल से तपे हुए हैं उन पर शीघ्र ही शान्ति की वर्षा करता है आप निरन्तर शेष जी के सहस्त्र मुखों से गाये हुए भगवत्कथा मृत का ही पान करते  रहते हैं मैं प्रेमल क्षणा भक्ति का प्रकाश करने के उद्देश्य से आप की शरण लेता हूं! 


!!७५!! जब अनेकों जन्मों के संचित पुण्य पूञ्ञ का उदय होने से मनुष्य को सत्सग्ड़ मिलता है तब वह उसके अज्ञान जनित मोह और मदरूप अन्धकार का नाश करके विवेक उदय  होता है!


!!७६!! नारद जी कहते हैं____अब मैं भक्ति ज्ञान और वैराग्य को स्थापित करने के लिये प्रयत्न पूर्वक श्री शुखदेव जी के कहे हुए भागवत शास्त्र की कथा द्वारा उज्जवल ज्ञान यज्ञ करूंगा!


!!!१!! यह यज्ञ मुझे कहां करना चाहिये आप इसके लिए कोई स्थान बताइ दीजिये आप लोग वेद के पारगामी हैं इसलिये  मुझे इस शुख शास्त्र की महिमा सुनाइये!


!!२!! यह  भी बताइये कि श्रीमद्भागवत की कथा कितनें दिनों में सुनानी चाहिये और उसके सुनने की विधि क्या है!


!!३!! सनकादि  बोले____नारद जी आप बड़े विनीत और विवेकी सुनिये हम आपको ये सब बातें बताते हैं हरि द्वार के पास आनन्द नामक एक घाट है!


!!४!! वहां अनेकों ऋषि रहते हैं तथा देवता और सिद्ध लोग भी उसका सेवन करते हैं भांति भांति के  वृक्ष और लता ओंके कारण वह बड़ा सघन है और वहां बड़ी कोमल नवीन बालू बिछी हुई है!


!!५!! वह घाट बड़ा ही सुरम्य और एकान्त प्रदेश में है वहां हर समय सुनहले कमलों की सुगन्ध आया करती है उसके आस-पास रहने वाले सिंह हाथी आदि परस्पर विरोधी जीवों के चित्त में भी वैर भाव नहीं है !

Post a Comment

0 Comments