महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन की काफी सहायता की थी किंतु एक बार भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच भी घमासान युद्ध हुआ था
हिंदू ग्रंथ के अनुसार अर्जुन और कृष्ण को दो जिस्म एक जान माना गया है ऐसा माना जाता है कि नर और नारायण ही कृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतरित हुए थे धरती पर कुंती पुत्र अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को अपना शाखा आराध्या और अपना मार्गदर्शक मानते थे भगवान श्री कृष्ण को अर्जुन बहुत ही ज्यादा मानते थे और अर्जुन को भी भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत प्रिय थे क्या आपको पता है भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच एक बार युद्ध हुआ था आज हम आपको इस आर्टिकल में इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताने वाले हैं
क्यों भगवान श्री कृष्ण ने ली प्रतिज्ञा
एक दिन महा ऋषि गालव प्रातः सुबह सूर्य देव को अर्ग अर्पित कर रहे थे उसी समय उनकी उंगलियों में चित्रसेन की पिक गिर गई यह देखकर महा ऋषि बड़े क्रोधित हो गए चित्रसेन को महा ऋषि श्राप देने ही वाले थे कि उन्हें अपने तपोबल नाश होने का ध्यान आया था और वह थोड़ी देर के बाद वह भगवान श्री कृष्ण के पास गए और उन्हें सारी बातें बताइए महाऋषि की बात सुनकर श्री कृष्ण चित्रसेन पर अत्यंत ही क्रोधित हो गए और उन्होंने आठ पहर के अंदर चित्रसेन का वध करने की प्रतिज्ञा ले ली
महा ऋषि गालव को विश्वास हो गया चित्रसेन का आज मृत्यु निश्चित है और फिर वह वहां से चले गए महागालव के वहां से जाते ही देव ऋषि नारद भगवान श्री कृष्ण से मिलने के लिए आए श्री कृष्ण ने देव ऋषि नारद का उदास मन से स्वागत किया भगवान श्री कृष्ण के मुख पर उदासी देख देव ऋषि नारद ने उनसे प्रश्न किया हे प्रभु आज आप इतने उदास क्यों हैं इस पर भगवान श्री कृष्ण ने देव ऋषि नारद से महाऋषि गालव की सारी व्यथा बताई और अपनी प्रतिज्ञा के बारे में भी उन्हें बताया
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देव ऋषि नारद पहुंचे चित्रसेन के पास
यह सुनकर के नारद श्री कृष्ण से आज्ञा लेकर वहां से चले गए इसके बाद देव ऋषि नारद चित्रसेन के पास पहुंचे नारद जी को अपने पास आता देखकर चित्रसेन ने नारद जी को प्रणाम किया इसके बाद चित्रसेन ने अपनी कुंडली लाकर देव ऋषि नारद से अपनी ग्रह दशा पूछने लगे यह देखकर नारद जी ने कहा अब तुम यह सब क्या पूछ रहे हो अब तुम्हारा अंत निकट आ गया है यदि अपना कल्याण चाहते हो
तो कुछ दान पुण्य कर लो क्योंकि 24 घंटे के अंदर भगवान श्री कृष्ण ने तुम्हें मार डालने की प्रतिज्ञा ले ली है अपनी मृत्यु की बात सुनकर चित्रसेन अपने प्राणों की गुहार लगाते हुए वह ब्रह्म देव के पास भगवान शिव के पास और अन्य कई देवताओं के पास पहुंच गए परंतु देवताओं ने उन्हें अपने पास ठहरने भी नहीं दिया देवताओं का यह कहना था कि वह भगवान श्री कृष्ण से शत्रुता नहीं करना चाहते हैं
अपने प्रति देवताओं का ऐसा व्यवहार देख करके चित्रसेन रोती बिलखती औरत के साथ देवऋषि नारद के पास पहुंच गए रोती स्त्रियों को देख कर के नारद जी को दया आ गई देव ऋषि नारद ने चित्रसेन से कहा तुम इसी समय मेरे साथ यमुना तट पर चलो चित्रसेन चलने के लिए तैयार हो गए यमुना तट पर पहुंचकर नारद जी चित्रसेन को एक जगह दिखाते हुए आधी रात को यहां पर एक स्त्री आएगी उसी समय तुम विलाप करते रहना वह इस्त्री तुम्हें बचा लेगी
एक बात का हमेशा ध्यान रखना जब तक वह स्त्री तुम्हारे प्राणों की रक्षा करने की प्रतिज्ञा ना ले ले तब तक तुम उसे अपना कष्ट मत बताना यह सब समझा कर नारद जी वहां से चले गए यमुना तट से आकर देव ऋषि नारद अर्जुन के महल में आकर सुभद्रा से भेंट किया नारद जी को यहां पर आया देख कर के सुभद्रा ने उन्हें प्रणाम किया और यहां पर आने का उनसे कारण पूछा
सुभद्रा की चित्रसेन को बचाने की प्रतिज्ञा
यह सुनकर के देव ऋषि नारद बोले सुभद्रा आज का दिन महत्वपूर्ण है आज रात्रि स्नान करने से और दीन की रक्षा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी इतना कहकर नारद जी वहां से चले गए आधी रात्रि अर्जुन की पत्नी सुभद्र सखियों के साथ यमुना तट पर पहुंच गई वहां पर पहुंचने के बाद सुभद्रा को किसी का विलाप करने की आवाज सुनाई दी यह सुनकर के सुभद्रा को देव ऋषि नारद का स्मरण हुआ सुभद्रा ने सोचा स्नान के साथ-साथ दिन की मदद करके अक्षय पुण्य कमा लूं
इतना सोच कर के सुभद्रा चित्रसेन के पास पहुंच गई सुभद्रा ने चित्रसेन से रोने का कारण पूछा लेकिन चित्र से ने उन्हें कुछ भी नहीं बताया अंत में सुभद्रा ने यह निर्णय लिया मैं प्रतिज्ञा लेती हूं कि तुम्हें जो कुछ भी कष्ट है मैं उसे दूर अवश्य करूंगी सुभद्रा के प्रतिज्ञा लेते ही चित्र से ने उन्हें अपनी सारी व्यथा बता दी चित्रसेन की बात सुनकर के सुभद्रा धर्म संकट में पड़ गई वह मन में सोचने लगे कि एक और श्रीकृष्ण की प्रतिज्ञा और दूसरी ओर मेरी प्रतिज्ञा आखिर क्या किया जाए
जब उन्हें कुछ नहीं सुझा तो उन्होंने चित्रसेन की रक्षा करने का निर्णय लिया और चित्रसेन को अपने साथ महल में ले गई राज महल पहुंचकर सुभद्रा ने अपनी सारी बातें अर्जुन को बता दी अर्जुन ने सुभद्रा से कहा चिंता मत करो तुम्हारी प्रतिज्ञा मैं अवश्य पूरी करूंगा नारद जी ने जब यह देखा चित्रसेन अर्जुन की शरण में सुरक्षित है तो वह फिर भगवान श्री कृष्ण से जाकर कहने लगे हे प्रभु चित्रसेन अभी अर्जुन के शरण में है इसीलिए आप सोच समझकर युद्ध के लिए प्रस्थान करें
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के ऊपर चलाया सुदर्शन चक्र
उसके बाद पांडव और कौरव युद्ध के मैदान में युद्ध करने लगे पांडव और कौरव के बीच काफी घनघोर युद्ध चला पर युद्ध का कोई परिणाम आता ना देख करके भगवान श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया अपनी और सुदर्शन चक्र आता हुआ देख कर के अर्जुन ने अपना पशुपतास्त्र अस्त्र छूटते दिया पशुपतास्त्र छूटे ही तीनों लोगों में प्रलय के लक्षण दिखने लगे यह देख करके अर्जुन ने भगवान शिव को स्मरण किया तभी शिव जी वहां पर प्रकट हुए और उन्होंने दोनों अस्त्र को निष्फल कर दिया
भगवान श्री कृष्ण भगवान शिव श्री कृष्ण के पास पहुंचे और उन्होंने कृष्ण से कहा भक्तों के सामने अपनी प्रतिज्ञा को भूल जाना आपका सहज स्वभाव है और इसके कई सारे उदाहरण है आपको इसी पर इस लीला को यहीं पर समाप्त कर देना चाहिए भगवान शिव के ऐसा कहते ही श्री कृष्ण ने अर्जुन को गले लगा लिया और उन्हें युद्ध श्रम से मुक्त कर दिया सभी लोग भगवान शिव और कृष्ण की जय जय कार करने लगे लेकिन यह बात महा ऋषि गालव को अच्छी नहीं लगी
वह बोले हे प्रभु आपने मेरे साथ अच्छा मजाक किया है अब मैं अपनी शक्ति दिखाता हूं मेरी शक्ति के सामने श्री कृष्ण अर्जुन सुभद्रा और चित्रसेन जल करके भस्म हो जाएंगे जैसे ही साधु ने अपने हाथों में जल लिया सुभद्रा कहने लगी हे महा ऋषि मैं यदि भगवान श्री कृष्ण की भक्त हूं और अर्जुन के प्रति मेरा पतिव्रता पूर्ण हो तो यह जल भूमि पर ना गिरे महा ऋषि गालव को अत्यंत ही शर्मिंदगी महसूस होने लगी तब महा ऋषि गालव ने भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम किया और वहां से अपने आश्रम की ओर चले गए
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