पांडवों की यात्रा में क्यों सिर्फ युधिष्ठिर को ही मिला स्वर्ग

महाभारत काल में पांडवों की यात्रा में सिर्फ युधिष्ठिर को ही स्वर्ग मिलने की बात सामने आती है लेकिन ऐसी क्या वजह थी जो सिर्फ युधिष्ठिर को ही स्वर्ग मिला

महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात पांडवों ने 36 वर्षों तक हस्तिनापुर में राज किया उसके पश्चात हस्तिनापुर में कई प्रकार की अपशगुन घटनाएं घटने लगी भगवान कृष्ण को गांधारी के द्वारा और उनके पुत्र शाम को ऋषियों के द्वारा श्राप के कारण यदुवंशी आपस में लड़ कर समाप्त हो गए तब बलराम ने समाधि धारण करके अपने प्राण त्याग दिए उसके बाद एक शिकारी द्वारा बाढ़ चलाए जाने पर भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपना देह त्याग दिया

जब इस बात की सूचना पांडव तक पहुंची तब उन्होंने भी द्रोपती सहित परलोक जाने का निश्चय किया और फिर सब लोग परलोक की ओर प्रस्थान कर लिए क्या आपको इस बात की जानकारी है कि युधिष्ठिर को कई सारे परीक्षाओं से गुजरना पड़ा था यदि आपको इस बात की जानकारी नहीं है तो आप इस पूरे आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें

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पांडवों की स्वर्ग यात्रा
पांडवों की स्वर्ग यात्रा

स्वर्ग की यात्रा से पहले युधिष्ठिर ने युयुत्सु को बुलाकर उससे संपूर्ण राज्य की देखभाल का भार सौंप दिया और अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित का राज्य अभिषेक कर दिया इसके बाद पांडवा और द्रोपति साधुओं के वस्त्र धारण किया और स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़े परंतु हस्तिनापुर से निकलने के बाद रास्ते में पांडवों के साथ एक कुत्ता भी उनके पीछे-पीछे चलने लगा यह देख अर्जुन भीम नकुल और सदैव को बड़ा ही आश्चर्य हुआ

तब युधिष्ठिर ने उन्हें बताया कि यह मेरा यह मेरा स्वामी भक्त कुत्ता है फिर पांचो पांडव और द्रौपदी सहित अनेकों नदी पहाड़ों की यात्रा करते करते आगे बढ़ने लगे फिर एक दिन वह सभी चलते-चलते लाल सागर तक आ गए परंतु अंतिम यात्रा के समय मैं भी अर्जुन अपने गांडीव धनुष वह लो लोग का त्याग नहीं कर पाए थे जिस कारण लाल सागर के पास अग्निदेव प्रकट हुए और उन्होंने अर्जुन से गांडीव धनुष और अक्षयतर्कशो का त्याग करने को कहा तब अर्जुन को ना चाहते हुए भी इन दोनों का त्याग करना पड़ा

भगवान शिव ने बताया पांडवों को स्वर्ग का मार्ग

फिर पांडवों ने पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करने की इच्छा से उत्तर की ओर यात्रा आरंभ की इस तरह यात्रा करते-करते पांडव हिमालय तक पहुंच गए जहां उन्हें केदारनाथ में भगवान शिव का दर्शन हुआ और उन्हें बंधु बंधुओं की हत्या से मुक्ति मिली फिर भगवान शिव ने उन्हें स्वर्ग का मार्ग बताया था पांडव आगे बढ़े तो उन्हें बालू से भरा हुआ समुद्र दिखाई दिया उसके बाद उन्होंने सुमेरु पर्वत के दर्शन किए फिर सब लोग स्वर्ग की ओर बढ़ने लगे तभी वहां पर इंद्रदेव प्रकट हुए उन्होंने पांडवों से कहा मैं तुम लोगों को लेने आया हूं तब युधिष्ठिर ने कहा प्रभु क्षमा करें हमलोग आपके साथ स्वर्ग लोक नहीं जा सकते क्योंकि हम सभी मनुष्य हैं

द्रोपती क्यों गिर पड़ी पहाड़ से नीचे

तभी युधिष्ठिर ने कहा प्रभु हम सभी मनुष्य हैं और हम सब लोग अपने बल के आधार पर ही स्वर्ग लोक पर तक जाएंगे युधिष्ठिर के मुंह से ऐसी बात सुनकर देवराज बहुत ज्यादा प्रसन्न हुए और वहां से चले गए तब वहां से पांचो पांडव तथा द्रोपति और वह कुत्ता सभी लोग स्वर्ग की यात्रा पर चलने लगे तभी द्रोपती लड़खड़ा कर पहाड़ों से नीचे गिर पड़ी यह देख कर भीम ने युधिष्ठिर से कहा भ्राता द्रोपती ने तो कभी भी कोई पाप नहीं किया है तो फिर क्या कारण है जो वह सबसे पहले पहाड़ों से नीचे गिर पड़ी

सहदेव भी गिरे पहाड़ से नीचे

तब युधिष्ठिर ने कहा भ्राता द्रोपती हम सभी भाइयों में से अर्जुन को सबसे ज्यादा प्रेम करती थी इसीलिए द्रोपती के साथ ऐसा हुआ ऐसा कह कर युधिष्ठिर वहां से आगे चलने लगे फिर थोड़ी देर के बाद सहदेव भी नीचे गिर गए तभी भीम ने पुनः युधिष्ठिर से प्रश्न किया भ्राता आप क्या कारण है जो सदैव भी नीचे गिर पड़े तब युधिष्ठिर ने कहा सहदेव अपने जैसा विद्वान किसी को भी नहीं समझते हैं इसी दोष के कारण सहदेव को आज नीचे गिरना पड़ा

जब अर्जुन और नकुल भी गिर पड़े पहाड़ से नीचे

इसी तरह कुछ देर के बाद नकुल भी पहाड़ों से नीचे गिर पड़े भीम ने युधिष्ठिर से पूछा था अब क्या कारण है जो नकुल का भी वही हाल हुआ जो द्रोपति और सहदेव का हुआ था तब युधिष्ठिर ने कहा नकुल को अपने रूप पर बहुत ज्यादा अभिमान था इसीलिए आज उसकी यह दशा हुई थोड़ी देर के बाद अर्जुन भी पहाड़ों से नीचे गिर पड़े इस बार भीम के सवाल करने से पहले ही युधिष्ठिर ने कहा अर्जुन को अपने परिक्रमण पर पर बहुत ही ज्यादा अभिमान था

अर्जुन को अर्जुन का यह मानना था कि वह एक ही दिन में शत्रु का नाश कर देगा लेकिन वह ऐसा कभी कर नहीं पाए इसीलिए आज अर्जुन को अपने कर्मों का फल मिला है ऐसा कह कर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए

भीम भी नहीं पहुंच सके स्वर्ग

उसके बाद थोड़ी देर आगे बढ़ने पर भीम भी नीचे गिर पड़े भीम ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया इसका क्या कारण है तब युधिष्ठिर ने कहा तुम बहुत ज्यादा भोजन करते हो और अपने बल का झूठा प्रदर्शन करते थे इसीलिए आज तुम्हें भूमि पर गिरना पड़ा यह कहकर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए

युधिष्ठिर की धर्मराज से मुलाकात

अब केवल वह कुत्ता ही उसके साथ चल रहा था थोड़ी देर के बाद युधिष्ठिर कुत्ते के साथ स्वर्ग के द्वार पर पहुंच गए वहां पर उन्हें धर्मराज दिखाई दिए धर्मराज ने युधिष्ठिर से कहा तुम्हारे साथ यह कुत्ता नहीं स्वर्ग लोक में प्रवेश कर सकता है

धर्मराज की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा यह मेरा परम भक्त है इसीलिए मेरे साथ इसे भी स्वर्ग लोक में जाने की आज्ञा दीजिए लेकिन धर्मराज ने ऐसा करने से मना कर दिया परंतु काफी देर तक समझाने के बाद भी जब युधिष्ठिर नहीं माने तो तो कुत्ते के रूप में से यमराज अपनी वास्तविक रूप में आ गए युधिष्ठिर जिस कुत्ते को अपना भक्त समझ रहे थे वास्तव में वह कुत्ता मृत्यु के देवता यमराज थे

युधिष्ठिर धर्मराज से प्रकट की भाइयों के साथ रहने की इच्छा

युधिष्ठिर को अपने धर्म में देखकर धर्मराज अत्यंत प्रसन्न हुए इसके बाद धर्मराज युधिष्ठिर को स्वर्ग लोक ले गए परंतु स्वर्ग में पहुंचकर युधिष्ठिर को बड़ा ही आश्चर्य हुआ वहां पर दुर्योधन एक दिव्य सिंहासन पर बैठा है जबकि उनके चारों भाइयों और द्रोपती भी वहां पर उपस्थित नहीं है तभी युधिष्ठिर ने देवताओं से कहा मेरे भाई तथा द्रोपति किस लोक में गए हैं जिस लोक में गए हैं मैं भी उसी लोक में जाना चाहता हूं मुझे उनसे उत्तम लोक में नहीं रहना है

तब देवताओं ने कहा यदि आपकी ऐसी ही इच्छा है तो आप इस देवदूत के साथ चले जाइए यह आपके सभी भाइयों तथा द्रोपती के पास पहुंचा देगा युधिष्ठिर देवदूत के साथ चले गए उसके बाद देवदूत ने युधिष्ठिर को ऐसे रास्ते से ले गया जो नर्क का द्वार था तथा नर्क का रास्ता था उस रास्ते पर चारों ओर घोर अंधेरा फैला हुआ था सभी और लाशों का अंबार लगा हुआ था जिसमें से बहुत ज्यादा गंध आ रही थी वहां पर लोहे के कौवा और गिद्ध मंडरा रहे थे असी पत्र नामक नर्क था

युधिष्ठिर ने देवदूत से कहा अभी हमें कितनी दूर और चलना होगा कहां है मेरे भ्राता तथा द्रोपति तब देवदूत ने कहा देवताओं ने मुझे कहा था कि जब युधिष्ठिर पूरी तरह से थक जाए तब उन्हें वापस ले करके वहीं पर आना तब युधिष्ठिर ने ऐसा ही करने का निश्चय किया परंतु जब युधिष्ठिर वहां से वापस लौटने लगे तब बहुत सारे लोगों की आवाज उन्हें सुनाई देने लगी जब युधिष्ठिर ने उन सभी लोगों से अपना परिचय पूछा तो सभी लोग अपना परिचय देने लगे किसी ने कहा मैं कर्ण हूं मैं भीम हूं मैं अर्जुन हूं मैं नकुल हूं और मैं सहदेव हूं और मेरा नाम द्रोपती है

युधिष्ठिर का स्वर्ग में प्रवेश

उन सभी लोगों का परिचय पाकर युधिष्ठिर बहुत ज्यादा हैरान हुए तब युधिष्ठिर ने देवदूत से कहा आप देवताओं के पास लौट जाइए मेरे भ्राता मुझे मिल गए हैं और मैं यहीं पर रहूंगा देवदूत ने जाकर यह बात देवराज इंद्र को बता दिया उसके बाद सभी देवता युधिष्ठिर के पास आ गए देवताओं के वहां आने पर सभी ओर सुगंधित हवाएं चलने लगी और अंधेरे से वहां पर उजाला हो गया

युधिष्ठिर ने इंद्र से पूछा यह सब क्या है तब इंद्र ने कहा तुमने अश्वत्थामा की मरने की बात कहकर तुमने छल से द्रोणाचार्य का वध करवाया था इसी कारण तुम्हें थोड़ी देर के लिए अपने कर्मों का फल मिला है वहां पर तुम्हारे भाई और अन्य वीर पहले ही पहुंच चुके हैं इंद्र के कहने पर युधिष्ठिर ने देवनदी गंगा पर स्नान किया स्नान करते ही उन्होंने मानव शरीर त्याग कर दिव्य शरीर धारण कर लिया और फिर वह स्वर्ग की ओर चले गए वहां पर युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के दर्शन किए और फिर अपने सभी भाइयों को वहां पर देखा और कई सारे अन्य वीर भी वहां पर उपस्थित थे


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