महाभारत कथा के अनुसार महाराज शांतनु राजा प्रतीक के बेटे थे और उन्होंने गंगा से शादी की थी जिससे देवव्रत नाम के पुत्र की उत्पत्ति हुई और यही आगे चलकर भीष्म पितामह के नाम से प्रसिद्ध हुए
जानकारी के लिए बता दें कि भीष्म पितामह गंगा के आठवें पुत्र थे जबकि उनके सात पुत्र गंगा नदी में प्रवाहित कर दिए गए थे ऐसा कहा जाता है कि इनके यह 7 पुत्र पिछले जन्म में 7 वसु में से एक दयु थे
भीष्म पितामह महाभारत में कौरवों की तरफ से युद्ध कर रहे थे और यह तो हम सभी जानते हैं कि कौरव अधर्म की तरफ से जिसका मतलब यह है कि गौरव की तरफ से युद्ध करने वाले भीष्म पितामह अभी अधर्म में शामिल थे
महाभारत का युद्ध शुरू होने के बाद भीष्म पितामह ने लगातार 10 दिनों तक प्रमुख सेनापति के रूप में युद्ध कर रहे थे लेकिन दसवां दिन पूरा होने के बाद पांडवों की जीत पर उन्होंने अपनी इच्छा मृत्यु का रहस्य उजागर कर दिया जिसके बाद ही युद्ध भूमि में भीष्म पितामह के सामने शिखंडी को उतारा जाता है जिसका कारण यह था कि भीष्म पितामह ने यह प्रण लिया था कि वह कभी भी स्त्री वेश्या और नपुंसक के ऊपर शस्त्र का प्रयोग नहीं करेंगे इसी का फायदा उठाकर अर्जुन ने बाणों की वर्षा की जिससे भीष्म पितामह को मृत्यु शैया पर लेटना पड़ा
भीष्म पितामह की मृत्यु शैया पर लेटने के बाद उनकी गर्दन भूमि की तरफ लटक रही थी इस पर भीष्म पितामह ने अर्जुन से क्षत्रिय धर्म का हवाला देते हुए तकिया की मांग की जिस पर अर्जुन ने तीन बाण भूमि पर चलाए जिससे भीष्म पितामह की गर्दन फिर से सीधी हो गई
भीष्म पितामह की मृत्यु शैया पर लेटने के बाद भी उनकी मृत्यु नहीं हुई जिसका कारण यह था कि भीष्म पितामह यह अच्छी तरह जानते थे कि सूर्य के उत्तरायण होने के बाद प्राण त्याग करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसीलिए वह सूर्य उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे और इसी तरह युद्ध लगातार 8 दिनों तक चलता रहा
also red ; आखिर अर्जुन और कृष्ण ने क्यों किया था युद्ध
लेकिन यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि भीष्म पितामह मृत्यु शैया पर लेटे लेटे ही भगवान श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन को राजधर्म मोक्ष धर्म और विवशता से किए जाने वाले कर्म के बारे में ज्ञान दिया
यहां पर चौथी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब सूर्य उत्तरायण होने के बाद जब सभी पुरोहित युधिष्ठिर और भीष्म के सगे संबंधी उनके पास पहुंचे तू भीष्म ने उन सब से कहा मेरे भाग्य से माघ महीने का शुक्ल पक्ष आ गया और अब मैं शरीर को त्यागना चाहता हूं यह कहते हुए उन्होंने सभी से विदा लिया और अपने शरीर को त्याग दिया
महाभारत काल के अनुसार भीष्म पितामह डेढ़ सौ वर्षों तक जीवित रहे इसके बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई लेकिन यहां पर पांचवी और सबसे अहम बात यह है कि भीष्म पितामह ने अपने जीवन काल में घोर अपराध किया था यदि आप इसके बारे में नहीं जानते हैं तो चलिए हम आपको बताते हैं
दरअसल बात यह है कि भीष्म पितामह ने अपने जीवन में अपनी शक्ति का गलत उपयोग करके गांधारी का विवाह जबरदस्ती धृतराष्ट्र से करवाया था सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि भीष्म पितामह ने पिछले जन्म में ऋषि वशिष्ठ की गाय कामधेनु का हरण कर लिया था जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा यहीं पर यदि भीष्म पितामह के जीवन काल में सबसे बड़े अपराध पर एक दृष्टि डाली जाए तो सबसे बड़ा अपराध उनका यह था कि जब द्रोपती का चीर हरण हो रहा था तो उन्होंने सभा में एक शब्द भी नहीं बोला था और मौन रहे इसके बाद जब जब महाभारत की युद्ध की शुरुआत हुई तब भी सब कुछ जानते हुए उन्होंने हमेशा कौरव का ही साथ दिया
लेकिन यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि भीष्म पितामह मृत्यु शैया पर लेटे लेटे ही भगवान श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन को राजधर्म मोक्ष धर्म और विवशता से किए जाने वाले कर्म के बारे में ज्ञान दिया
यहां पर चौथी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब सूर्य उत्तरायण होने के बाद जब सभी पुरोहित युधिष्ठिर और भीष्म के सगे संबंधी उनके पास पहुंचे तू भीष्म ने उन सब से कहा मेरे भाग्य से माघ महीने का शुक्ल पक्ष आ गया और अब मैं शरीर को त्यागना चाहता हूं यह कहते हुए उन्होंने सभी से विदा लिया और अपने शरीर को त्याग दिया
महाभारत काल के अनुसार भीष्म पितामह डेढ़ सौ वर्षों तक जीवित रहे इसके बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई लेकिन यहां पर पांचवी और सबसे अहम बात यह है कि भीष्म पितामह ने अपने जीवन काल में घोर अपराध किया था यदि आप इसके बारे में नहीं जानते हैं तो चलिए हम आपको बताते हैं
दरअसल बात यह है कि भीष्म पितामह ने अपने जीवन में अपनी शक्ति का गलत उपयोग करके गांधारी का विवाह जबरदस्ती धृतराष्ट्र से करवाया था सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि भीष्म पितामह ने पिछले जन्म में ऋषि वशिष्ठ की गाय कामधेनु का हरण कर लिया था जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा यहीं पर यदि भीष्म पितामह के जीवन काल में सबसे बड़े अपराध पर एक दृष्टि डाली जाए तो सबसे बड़ा अपराध उनका यह था कि जब द्रोपती का चीर हरण हो रहा था तो उन्होंने सभा में एक शब्द भी नहीं बोला था और मौन रहे इसके बाद जब जब महाभारत की युद्ध की शुरुआत हुई तब भी सब कुछ जानते हुए उन्होंने हमेशा कौरव का ही साथ दिया
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