देवर्षि नारद की भक्ति से भेंट _भाग-२२

 !!२३!! ब्राह्मणों ने कहा_____ यह समस्त सद्गुणों की महिमा धारण करने में श्री कृष्ण का अनुयायी होगा रन्तिदेव के समान उदार होगा और ययाति के समान धार्मिक होगा !

देवर्षि- नारद- की- भक्ति- से- भेंट _भाग-२२


!!२४!! धैर्य में बलिके  समान और भगवान श्री कृष्ण के प्रति दृढ़ निष्ठा में यह प्रह्लाद के समान होगा यह बहुत से अश्वमेध यज्ञों का करने वाला और वृद्धों का सेवक होगा!


!!२५!! इसके पुत्र राजर्षि होंगे मर्यादा का उल्लंघन करने वालों को यह दण्ड देगा यह पृथ्वी माता और धर्म की रक्षा के लिए कलियुग का भी दमन करेगा !


!!२६!! ब्राह्मण कुमार के शाप से तक्षक के द्वारा अपनी मृत्यु सुनकर यह सब की आसक्ति छोड़ देगा और भगवान के चरणों की शरण लेगा !


!!२७!! राजन व्यास नन्दन सुकदेव जी से यह आत्मा के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करेगा और अन्त में गग्डा़तट पर अपने शरीर को त्याग कर निश्चय ही अभय पद प्राप्त करेगा !


!!२८!! ज्यौतिष शास्त्र के विशेषज्ञ ब्राह्मण राजा युधिष्ठिर को इस प्रकार बालक के जन्म लग्रका फल बतलाकर और भेंट पूजा लेकर अपने अपने घर चले गये !


!!२९!! वही यह बालक संसार में परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ क्योंकि वह समर्थ बालक गर्भ में जिस पुरुष का दर्शन पा चुका था उसका स्मरण करता हुआ लोगों में उसी की परीक्षा करता रहता था कि देखें इन में से कौन सा वह है !


!!३०!! जैसे शुक्ल पक्षमें दिन प्रतिदिन चन्द्रमा अपनी कलाओं से पूर्ण होता हुआ बढ़ता है वैसे ही वह राजकुमार भी अपने गुरुजनों के लालन-पालन से क्रमश: से अनु दिन बढ़ता हुआ शीघ्र ही सयाना हो गया !


!!३१!! इसी समय स्वजनों के वध का प्रायश्चित्त करने के लिए राजा युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ के द्वारा भगवान की आराधना करने का विचार किया परंतु प्रजा से वसूल किए हुए कर और दण्ड (जुर्माने) की रकम के अतिरिक्त और धन न होने के कारण वे बड़ी चिन्ता में पड़ गये !


!!३२!! उनका अभिप्राय समझकर भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा से उनके भाई उत्तर दिशा में राजा मरुत्त और ब्राह्मणों द्वारा छोडा़ हुआ बहुत सा धन ले आये !


!!३३!! उससे यज्ञ की सामग्री एकत्र करके धर्म भीरु महाराज युधिष्ठिर ने तीन अश्वमेध यज्ञों के द्वारा भगवान की पूजा की !


!!३४!! युधिष्ठिर के नियन्त्रण से पधारे हुए भगवान ब्राह्मणों द्वारा उनका यज्ञ संपन्न कराकर अपने सुहद

 पाण्डवों की प्रसन्नता के लिए कई महीनों तक वही रहे !


!!३५!! शौनक जी इसके बाद भाइयों सहित राजा युधिष्ठिर और द्रौपदी से अनुमति लेकर अर्जुन के साथ यदुवंशियों से घिरे हुए भगवान श्री कृष्ण ने द्वारका के लिए प्रस्थान किया !


!!३६!! सूत जी कहते हैं____विदुर जी तीर्थ यात्रा में महर्षि मैत्रेय से आत्मा का ज्ञान प्राप्त करके हस्तिनापुर लौट आये उन्हें जो कुछ जानने की इच्छा थी वह पूर्ण हो गयी थी !


!!१!! विदुर जी ने मैत्रेय ऋषि से जितने प्रश्न किये थे उनका उत्तर सुनने के पहले ही श्रीकृष्ण में अनन्य भक्ति हो जाने के कारण वे उत्तर सुनने से उपराम हो गये !


!!२!! शौनक जी अपने चाचा विदुर जी को आया देख धर्मराज युधिष्ठिर उनके चारों भाई धृतराष्ट्र ,युयुत्सु , संजय कृपाचार्य कुन्ती , गान्धारी , द्रौपदी , सुभद्रा ,उत्तरा कृपी , तथा पाण्डव परिवार के अन्य सभी नर नारी और अपने पुत्रों सहित दूसरी स्त्रियां सब के सब बड़ी प्रसन्नता से मानो मृत शरीर में प्राण आ गया हो ऐसा अनुभव करते हुए उनकी अगवानी के लिए सामने गये यथायोग्य आलिग्ड़न और प्रणामदि के द्वारा सब उनसे मिले और विरह जनित उत्कण्ठा से कातर होकर सबने प्रेम के आंसू बहाये युधिष्ठिर ने आसन पर बैठाकर उनका यथोचित सत्कार किया !


!!३-६!! जब वे भोजन एवं विश्राम करके सुख पूर्वक आसन पर बैठे थे तब युधिष्ठिर ने विनय से झुक कर सबके सामने ही उनसे कहा !


!!७!! युधिष्ठिर ने कहा_____चाचा जी जैसे पक्षी अपने अंडों को पंखों की छाया के नीचे रखकर उन्हें सेते और बढ़ाते हैं वैसे ही आपने अत्यंत वात्सल्य से अपने कर कमलों की छत्रछाया में हम लोगों को पाला पोसा है बार-बार आपने हमें और हमारी माता को  विषदान और लाक्षागृह के दाह आदि विपत्तियों से बचाया है क्या आप कभी हम लोगों की भी याद करते रहे हैं !


!!८!! आपने पृथ्वी पर विचरण करते समय किस वृत्ति से जीवन निर्वाह किया आपने पृथ्वी तल पर किन-किन तीर्थों और मुख्य क्षेत्रों का सेवन किया !


!!९!! प्रभो आप जैसे भगवान के प्यारे भक्त स्वयं ही तीर्थ स्वरूप होते हैं आप लोग अपने हृदय में विराजमान भगवान के द्वारा तीर्थों को भी महातीर्थ बनाते हुए विचरण करते हैं !


!!१०!! चाचा जी आप तीर्थ यात्रा करते हुए द्वारका भी अवश्य ही गए होंगे वहां हमारे सुह्रद एवं भाई बन्धु यादव लोग जिनके एक मात्र आराध्य देव श्री कृष्ण हैं अपनी नगरी में मुख से तो है न आपने यदि जाकर देखा नहीं होगा तो सुना तो अवश्य ही होगा !


!!११!! युधिष्ठिर के इस प्रकार पूछने पर विदुर जी ने तीर्थों और यदुवंशियों के सम्बन्ध में जो कुछ देखा सुना और अनुभव किया था सब क्रम से बतला दिया केवल यदुवंश के विनाश की बात नहीं कही !


!!१२!! करुण ह्रदय विदुर जी पांडवों को दुःखी नहीं देख सकते थे इसलिए उन्होंने यह अप्रिय एवं असहा घटना पाण्डवों को नहीं सुनायी क्योंकि वह तो स्वयं ही प्रकट होने वाली थी !


!!१३!! पाण्डव विदुर जी का देवता के समान सेवा सत्कार करते थे वे कुछ दिनों तक अपने बड़े भाई धृतराष्ट्र की कल्याण कामना से सब लोगों को प्रसन्न करते हुए मुख पूर्वक हस्तिनापुर में ही रहे !


!!१४!! विदुर जी तो साक्षात धर्मराज थे माण्डव्य ऋषि के शाप से यह सौ वर्ष के लिए शुद्र बन गए थे इतने दिनों तक यमराज के पद पर अर्यमा थे और वही पापियों को उचित दण्ड देते थे !


!!१५!! राज्य प्राप्त हो जाने पर अपने लोकपालो  सरीखे भाइयों के साथ राजा युधिष्ठिर वंशधर परीक्षित को देखकर अपनी अतुल सम्पत्ति आनन्दित रहने लगे!


!!१६!! इस प्रकार पाण्डव गृहस्थ के काम धंधों में रम गये और उन्हीं के पीछे एक प्रकार से यह बात भूल गये कि अनजान में ही हमारा जीवन मृत्यु की ओर जा रहा है अब देखते देखते उनके सामने वह समय आ पहुंचा जिसे कोई टाल नहीं सकता !


!!१७!! परन्तु विदुर जी ने काल की गति जानकर अपने बड़े भाई धृतराष्ट्र से कहा महाराज देखिए अब बड़ा भयंकर समय आ गया है झटपट यहां से निकल चलिये !


!!१८!! हम सब लोगों के सिर पर वह सर्वस मर्थ काल मंडरा ने लगा है जिसके टालने का कहीं भी कोई उपाय नहीं है !


!!१९!! काल के वशी भूत होकर जीव का अपने प्रियतम प्राणों से भी बात की बात में वियोग हो जाता है फिर धन-जन आदि दूसरी वस्तुओं की तो बात ही क्या है !


!!२०!! आपके चाचा ताऊ भाई सगे सम्बन्धी और पुत्र सभी मारे गए आपकी उम्र भी ढल चुकी शरीर बुढ़ापे का शिकार हो गया आप पराये  घर में पड़े हुए हैं !


!!२१!! ओह इस प्राणी को जीवित रहने की कितनी प्रबल इच्छा होती है इसी के कारण तो आप भीम का दिया हुआ टुकड़ा खाकर कुत्ते का सा जीवन बिता रहे हैं !


!!२२!! जिनको आपने आग में जलाने की चेष्टा की विष देकर मार डालना चाहा भरी सभा में जिनकी विवाहिता पत्नी को अपमानित किया जिनकी भूमि और धन छीन लिये उन्हीं के अन्न से पले हुए प्राणों को रखने में क्या गौरव हैं !


!!२३!! आपके अज्ञान की हद हो गयी कि अब भी आप जीना चाहते हैं परन्तु आपके चाहने से क्या होगा पुराने वस्त्र की तरह बुढ़ा पेसे गला हुआ आपका शरीर आपके न चाहने पर भी क्षीण हुआ जा रहा है !


!!२४!! अब इस शरीर से आपका कोई स्वार्थ सधने वाला नहीं है इसमें फंसिये मत इसकी ममता का बन्धन काट डालिये जो संसार के सम्बन्धियों से अलग रह कर उनके अनजान में अपने शरीर का त्याग करता है वही धीर कहा गया है !


!!२५!! चाहे अपनी समझ से हो या दूसरे के समझाने से जो इस संसार को दुःख रूप समझ कर इससे विरक्त हो जाता है और अपने अन्तः करण को वश में करके हृदय में भगवान को धारण कर संन्यास के लिये घर से निकल पड़ता है वहीं उत्तम मनुष्य है !


!!२६!! इसके आगे जो समय आने वाला है वह प्रायः मनुष्यों के गुणों को घटाने वाला होगा इसलिये आप अपने कुटुम्बियों से छिपकर उत्तराखंड में चले जाइये !


!!२७!! जब छोटे भाई विदुर ने अंधे राजा धृतराष्ट्र को इस प्रकार समझाया तब उनकी प्रज्ञा के नेत्र खुल गये वे भाई बन्धुओं के सुदृढ़ स्नेह पाशों को काटकर अपने छोटे भाई विदुर के देखलाये  हुए मार्ग से निकल पड़े !


!!२८!! जब परम पतिव्रता सुबल नन्दिनी गान्धारी ने देखा कि मेरे पतिदेव तो उस हिमालय की यात्रा कर रहे हैं जो सन्यासियों को वैसा ही सुख देता है जैसा वीर पुरुषों को लड़ाई के मैदान में अपने शत्रु के द्वारा किए हुए न्यायोचित प्रहार से होता है तब वे भी उनके पीछे पीछे चल पड़ी !


!!२९!! अजात शत्रु युधिष्ठिर ने प्रातः काल संध्या वंदन तथा अग्रिहोत्र करके ब्रह्मणों को नमस्कार किया और उन्हें तिल गौ भूमि और स्वर्ण दान किया इसके बाद जब वे गुरुजनों की चरण वन्दन के लिए राजमहल में गये तब उन्हें धृतराष्ट्र , विदुर तथा गान्धारी के दर्शन नहीं हुए !

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