!!५८!! सूत जी कहते हैं____इसके बाद पाण्डव श्री कृष्ण के साथ जलाञ्ञलि के इच्छुक मरे हुए स्वजनों का तर्पण करने के लिए स्त्रियों को आगे करके गग्डा़तट पर गये !
!!१!! वहां उन सब ने मृत बंधुओं को जल दान दिया और उनके गुणों का स्मरण करके बहुत विलाप किया तदनन्तर भगवान के चरण कमलों की धूलि से पवित्र गग्डा़ जल में पुनः स्नान किया !
!!२!! वहां अपने भाइयों के साथ कुरुपति महाराज युधिष्ठिर धृतराष्ट्र पुत्र शोक से व्याकुल गान्धारी कुन्ती और द्रौपदी सब बैठकर मरे हुए स्वजनों के लिए शोक करने लगे भगवान श्री कृष्ण ने धौम्यादि मुनियों के साथ उनको सांत्वना दी और समझाया कि संसार के सभी प्राणी काल के अधीन है मौत से किसी को कोई बचा नहीं सकता !
!!३-४!! इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने अजात शत्रु महाराज युधिष्ठिर को उनका वह राज्य जो धर्तों ने छल से छीन लिया था वापस दिलाया तथा द्रौपदी के केशों का स्पर्श करने से जिनकी आयु क्षीण हो गई थी उन दुष्ट राजाओं का वध कराया !
!!५!! साथ ही युधिष्ठिर के द्वारा उत्तम सामग्रियों से तथा पुरोहितों से तीन अश्वमेध यज्ञ कराये इस प्रकार युधिष्ठिर के पवित्र यश को सौ यज्ञ करने वाले इन्द्र के यश की तरह सब ओर फैला दिया !
!!६!! इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने वहां से जाने का विचार किया उन्होंने इसके लिए पांडवों से विदा ली और व्यास आदि ब्राह्मणों का सत्कार किया उन लोगों ने भी भगवान का बड़ा ही सम्मान किया तदनन्तर सात्याकि और उद्धव के साथ द्वारका जाने के लिए वे रथ पर सवार हुए उसी समय उन्होंने देखा कि उत्तरा भय से भी विहल होकर सामने से दौड़ी चली आ रही है !
!!७-८!! उत्तरा ने कहा____देवाधिदेव जगदीश्वर आप महायोगी हैं आप मेरी रक्षा कीजिए रक्षा कीजिए आपके अतिरिक्त इस लोक में मुझे अभय देने वाला और कोई नहीं है क्योंकि यहां सभी परस्पर एक दूसरे की मृत्यु के निमित्त बन रहे हैं !
!!९!! प्रभो आप सर्व शक्तिमान है यह दहकते हुए लोहे का बाण मेरी ओर दौड़ा आ रहा है स्वामि यह मुझे भेल ही जला डाले परन्तु मेरे गर्भ को नष्ट न करे ऐसी कृपा कीजिए !
!!१०!! सूत जी कहते हैं____भक्तवत्सल भगवान श्री कृष्ण उसकी बात सुनते ही जान गए कि अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश को निर्बीज करने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया है !
!!११!! शौनक जी उसी समय पांडवों ने भी देखा कि जलते हुए पांच बाण हमारी ओर आ रहे हैं इसलिए उन्होंने भी अपने अपने अस्त्र उठा लिए !
!!१२!! सर्वशक्तिमान भगवान श्री कृष्ण ने अपने अनन्य प्रेमियों पर शरणागत भक्तों पर बहुत बड़ी विपत्ति आयी जाकर अपने निज अस्त्र सुदर्शन चक्र से उन निज जनों की रक्षा की !
!!१३!! योगेश्वर श्रीकृष्ण समस्त प्राणियों के हृदय में विराजमान आत्मा है उन्होंने उत्तरा के गर्भ को पाण्डवों की वंश परम्परा चलाने के लिए अपनी माया के कवच से ढक दिया !
!!१४!! शौनक जी यद्यपि ब्रह्मास्त्र अमोघ है और उसके निवारण का कोई उपाय भी नहीं है फिर भी भगवान श्री कृष्ण के तेज के सामने आकर वह शांत हो गया !
!!१५!! यह कोई आश्चर्य की बात नहीं समझनी चाहिए क्योंकि भगवान तो सर्वाश्चर्य मय है वे ही अपनी निज शक्ति माया से स्वयं अजन्मा होकर भी इस संसार की सृष्टि रक्षा और संहार करते हैं !
!!१६!! जब भगवान श्री कृष्णा जाने लगे तब ब्रह्मास्त्र की ज्वाला से मुक्त अपने पुत्रों के और द्रौपदी के साथ सती कुन्ती ने भगवान श्री कृष्ण की इस प्रकार स्तुति की !
!!१७!! कुन्ती ने कहा___आप समस्त जीवों के बाहर और भीतर एकरस स्थित है फिर भी इंद्रियों और वृत्तियों से देखे नहीं जाते क्योंकि आप प्रकृति से परे आदि पुरुष परमेश्वर है मैं आपको नमस्कार करती हूं !
!!१८!! इंद्रियों से जो कुछ जाना जाता है उसकी तहमें आप विद्यमान रहते हैं और अपनी ही माया के पर देसे अपने को ढके रहते हैं मैं अबोध नारी आप अविनाशी पुरुषोत्तम को भला कैसे जान सकती हूं जैसे मूढ़ लोग दूसरा भेष धारण किए हुए नट को प्रत्यक्ष देखकर भी नहीं पहचान सकते वैसे ही आप दीखते हुए भी नहीं दिखते !
!!१९!! आप शुद्ध हृदय वाले विचारशील जीवन्मुक्त परमहंसों के ह्रदय में अपनी प्रेममयी भक्ति का सृजन करने के लिए अवतीर्ण हुए हैं फिर हम अल्प बुद्धि स्त्रियां आपको कैसे पहचान सकती है !
!!२०!! आप श्री कृष्ण वासुदेव देवकी नन्दन नन्द गोपके लाड़ले लाल गोविंद को हमारा बारंबार प्रणाम है !
!!२१!! निनकी नाभि से ब्रह्मा का जन्म स्थान कमल प्रकट हुआ है जो सुंदर कमलों की माला धारण करते हैं जिनके नेत्र कमल के समान विशाल और कोमल हैं जिनके चरण कमलों में कमल का चिन्ह है श्री कृष्ण ऐसे आप को मेरा बार बार नमस्कार है !
!!२२!! हषीकेश जैसे आपने दुष्ट कंस के द्वारा कैद की हुई और चिरकाल से शोक ग्रस्त देवकी की रक्षा की थी वैसे ही पुत्रों के साथ मेरी भी आपने बार-बार विपत्तियों से रक्षा की है आप ही हमारे स्वामी है आप सर्वशक्तिमान हैं श्री कृष्ण कहां तक गिनाउं विषसे लाक्षागृह की भयानक आग से हिडिम्ब आदि राक्षसों की दृष्टि से दुष्टों की द्यूत सभा से वनवासकी विपत्तियों से और अनेक बार के युद्धों में अनेक महारथियों के शस्त्रास्त्रों से और अभी अभी इस अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से भी आपने ही हमारी रक्षा की है !
!!२३-२४!! जगद्गगुरो हमारे जीवन में सर्वदा पद पद पर विपत्तियां आती रहे; क्योंकि विपत्तियों में ही निश्चित रूप से आपके दर्शन हुआ करते हैं और आपके दर्शन हो जाने पर फिर जन्म मृत्यु के चक्कर में नहीं आना पड़ता !
!!२५!! ऊंचे कुल में जन्म ऐश्वर्य विद्या और संपत्ति के कारण जिसका घमंड बढ़ रहा है वह मनुष्य तो आपका नाम भी नहीं ले सकता क्योंकि आप तो उन लोगों को दर्शन देते हैं जो अकींचन हैं !
!!२६!! आप निर्धनों के परम धन हैं माया का प्रपच्ञ आपका स्पर्श भी नहीं कर सकता आप अपने आप में ही विहार करने वाले परम शान्त स्वरूप है आप ही कैवल्य मोक्ष के अधिपति हैं आपको मैं बार-बार नमस्कार करती हूं !
!!२७!! मैं आपको अनादि अनन्त सर्वव्यापक सबके नियन्ता काल रूप परमेश्वर समझती हूं संसार के समस्त पदार्थ और प्राणी आपस में टकराकर विषमता के कारण परस्पर विरुद्ध हो रहे हैं परंतु आप सब में समान रूप से विचर रहे हैं !
!!२८!! भगवन् आप जब मनुष्यों की सी लीला करते हैं तब आप क्या करना चाहते हैं यह कोई नहीं जानता आपका कभी कोई न प्रिय है और न अप्रिय आपके सम्बन्ध में लोगों की बुद्धि ही विषय हुआ करती है !
!!२९!! आप विश्व के आत्मा है विश्वरूप है न आप जन्म लेते हैं और न कर्म ही करते हैं फिर भी पशु पक्षी मनुष्य ऋषि जलचर आदि में आप जन्म लेते हैं और उन योनियों के अनुरूप दिव्य कर्म भी करते हैं यह आप की लीला ही तो है !
!!३०!! जब बचपन में आपने दूध की मटकी फोड़ कर यशोदा मैया को खिझा दिया था और उन्होंने आपको बांधने के लिए हाथ में रस्सी ली थी तब आपकी आंखों में आंसू छलक आए थे काजल कपोलों पर बह चला था नेत्र चच्ञल हो रहे थे और भयकी भावना से आपने-अपने मुख को नीचे की ओर झुका लिया था आपकी उस दशा का लिला छबि का ध्यान करके मैं मोहित हो जाती हूं भला जिससे भय भी भय मानता है उसकी यह दशा !
!!३१!! आपने अजन्मा होकर भी जन्म क्यों लिया है इसका कारण बतलाते हुए कोई कोई महापुरुष यों कहते है कि जैसे मलयाचल की कीर्ति का विस्तार करने के लिए उसमें चंदन प्रकट होता है वैसे ही अपने प्रिय भक्त पूण्य श्लोक राजा यदु की कीर्ति का विस्तार करने के लिए ही आपने उनके वंश में अवतार ग्रहण किया है !
!!३२!! दूसरे लोग यों कहते हैं कि वसुदेव और देवकी ने पूर्व जन्म में (सूतपा और पृश्रि के रूप में) आप से यही वरदान प्राप्त किया था इसीलिए आप अजन्मा होते हुए भी जगत के कल्याण और दैत्यों के नाश के लिए उनके पुत्र बने हैं !
!!३३!! कुछ और लोग यों कहते हैं कि यह पृथ्वी दैत्यों के अत्यंत भार से समुद्र में डूबते हुए जहाज की तरह डगमगा रही थी पीड़ित हो रही थी तब ब्रह्मा की प्रार्थना से उसका भार उतारने के लिए ही आप प्रकट हुए !
!!३४!! कोई महापुरुष यों कहते हैं कि जो लोग इस संसार में अज्ञान कामना और कर्मों के बन्धन मे जकड़े हुए पीड़ित हो रहे हैं उन लोगों के लिए श्रवण और स्मरण करने योग्य लीला करने के विचार से ही आपने अवतार ग्रहण किया है !
!!३५!! भक्तजन बार-बार आप के चरित्र का श्रवण गान कीर्तन एवं स्मरण करके आनन्दित होते रहते हैं वे ही अविलम्ब आपके उस चरण कमल का दर्शन कर पाते हैं जो जन्म मृत्यु के प्रवाह को सदा के लिए रोक देता है !
!!३६!! भक्तवाञ्छा कल्पतरु प्रभो क्या अब आप अपने आश्रित और सम्बन्धी हम लोगों को छोड़कर जाना चाहते हैं आप जानते हैं कि आपके चरण कमलों के अतिरिक्त हमें और किसी का सहारा नहीं है पृथ्वी के राजाओं के तो हम यों विरोधी हो गए हैं !
!!३७!! जैसे जीव के बिना इंद्रियां शक्तिहीन हो जाती है वैसे ही आपके दर्शन बिना यदुवंशियों के और हमारे पुत्र पाण्डवों के नाम तथा रूप का आस्तित्व ही क्या रह जाता है !
0 Comments