!!१२!! श्री सूत जी ने कहा_____ जिस समय महाभारत युद्ध में कौरव और पाण्डव दोनों पक्षों के बहुत से वीर वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और भीम सेनकी गदा के प्रहार से दुर्योधन की जांघ टूट चुकी थी तब अश्वत्थामा ने अपने स्वामी दुर्योधन का प्रिय कार्य समझ कर द्रौपदी के सोते हुए पुत्रों के सिर काट कर उसे भेंट किए यह घटना दुर्योधन को भी अप्रिय ही लगी क्योंकि ऐसे नीच कर्म की सभी निंदा करते हैं !
!!१३-१४!! उन बालकों की माता द्रोपदी अपने पुत्रों का निधन सुनकर अत्यंत दुःखी हो गई उसकी आंखों में आंसू छलछला आये वह रोने लगी अर्जुन ने उसे सांत्वना देते हुए कहा !
!!१५!! कल्याणि मैं तुम्हारे आंसू तब पोछूंगा जब उस आततायी ब्राह्मणा धमका सिर गाण्डीव धनुष के बाणों से काट कर तुम्हें भेंट करूंगा और पुत्रों की अंत्येष्टि क्रिया के बाद तुम उस पर पैर रखकर स्न्नान करोगी !
!!१६!! अर्जुन ने इस मीठी और विचित्र बातों से द्रौपदी को सांत्वना दी और अपने मित्र भगवान श्रीकृष्ण सलाह से उन्हें सारथि बनाकर कवच धारण कर और अपने भयानक गाण्डीव धनुष को लेकर वे रथ पर सवार हुए तथा गुरु पुत्र अश्वत्थामा के पीछे दौड़ पड़े !
!!१७!! बच्चों की हत्या से अश्वत्थामा का भी मन उद्विग्र हो गया था जब उसने दूरसे ही देखा कि अर्जुन मेरी ओर झपटे हुए आ रहे है तब वह अपने प्राणों की रक्षा के लिए पृथ्वी पर जहां तक भाग सकता था रुद्र से भयभीत सूर्य की भांति भागता रहा !
!!१८!! जब उसने देखा कि मेरे रश्के घोड़े थक गए हैं और मैं बिल्कुल अकेला हूं तब उसने अपने को बचाने का एक मात्र साधन ब्रह्मास्त्र ही समझा !
!!१९!! यद्यपि उसे ब्रह्मास्त्र को लौटाने की विधि मालूम न थी फिर भी प्राणसक्ड़ट देखकर उसने आचमन किया और ध्यानस्थ होकर ब्रह्मास्त्र का सन्धान किया !
!!२०!! उस अस्त्र से सब दिशाओं में एक बड़ा प्रचण्ड तेज फैल गया अर्जुन ने देखा कि अब तो मेरे प्राणों पर ही आ बनी है तब उन्होंने श्री कृष्ण से प्रार्थना की !
!!२१!! अर्जुन ने कहा____श्री कृष्ण तुम सच्चिदानन्द स्वरूप परमात्मा हो तुम्हारे शक्ति अनन्त है तुम्हीं भक्तों को अभय देने वाले हो जो संसार की धधकती हुई आग में जल रहे हैं उन जीवों को उससे उबारने वाले एकमात्र तुम्हीं हो !
!!२२!! तुम प्रकृति से परे रहने वाले आदि पुरुष साक्षात परमेश्वर हो अपनी चित शक्ति (स्वरूप शक्ति) से बहिरग्ड़ एवं त्रिगुण मयी माया को दूर भगा कर अपने अद्वितीय स्वरूप में स्थित हो !
!!२३!! वहीं तुम अपने प्रभाव से माया मोहित जीवों के लिये धर्मादि रूप कल्याण का विधान करते हो !
!!२४!! तुम्हारा यह अवतार पृथ्वी का भार हरण करने के लिए और तुम्हारे अनन्य प्रेमी भक्त जनों के निरंतर स्मरण ध्यान करने के लिए है !
!!२५!!स्वयम्प्रकाश स्वरूप श्री कृष्णा यह भयक्ड़र तेज सब ओर से मेरी ओर आ रहा है यह क्या है कहां से क्यों आ रहा है इसका मुझे बिल्कुल पता नहीं है !
!!२६!! भगवान ने कहा_____अर्जुन यह अश्वत्थामा का चलाया हुआ ब्रह्मास्त्र है यह बात समझ लो कि प्राण सक्ड़ट उपस्थित होने से उसे ने इसका प्रयोग तो कर दिया है परंतु वह इस अस्त्र को लौटाना नहीं जानता !
!!२७!! किसी भी दूसरे अस्त्र में इसको दबा देने की शक्ति नहीं है तुम शस्त्रास्त्र विद्या को भलीभांति जानते ही हो ब्रह्मास्त्र के तेज से ही इस ब्रह्मास्त्र की प्रचण्ड आग को बुझा दो !
!!२८!! सूतजी कहते हैं____अर्जुन विपक्षी वीरों को मारने में बडे़ प्रवीण थे भगवान की बात सुनकर उन्होंने आचमन किया और भगवान की परिक्रमा करके ब्रह्मास्त्र के निवारण के लिए ब्रह्मास्त्र का सन्धान किया !
!!२९!! बाणों से वेष्टित उन दोनों ब्रह्मास्त्रों के तेज प्रलय कालीन सूर्य एवं अग्रि के समान आपस में टकराकर सारे आकाश और दिशाओं में फैल गए और बढ़ने लगे !
!!३०!! तीनों लोकों को जलाने वाली उन दोनों अस्त्रों की बढ़ी हुई लपटों से प्रजा जलने लगी और उसे देखकर सबने यही समझा कि यह प्रलय कालीन की सांवर्तक अग्रि है !
!!३१!! उस आग से प्रजा का और लोकों का नाश होते देखकर भगवान की अनुमति से अर्जुन ने उन दोनों को ही लौटा दिया !
!!३२!! अर्जुन की आंखों क्रोध से लाल लाल हो रही थी उन्होने झपट कर उस क्रूर अश्वत्थामा को पकड़ लिया और जैसे कोई रस्सी से पशु को बांध ले वैसे ही बांध लिया !
!!३३!! अश्वत्थामा को बलपूर्वक बांधकर अर्जुन ने जब शिविर की ओर ले जाना चाहा तब उनसे कमलनयन भगवान श्री कृष्ण ने कुपित होकर कहा !
!!३४!! अर्जुन इस ब्राह्मणाधम को छोड़ना ठीक नहीं है इसको तो मार ही डालो इसने रात में सोए हुए निरपराध बालकों की हत्या की है !
!!३५!! धर्मवेत्ता पुरुष और असावधान मतवाले पागल सोए हुए बालक स्त्री विवेक ज्ञानशून्य शरणागत रथहीन और भयभीत शत्रु को कभी नहीं मारते !
!!३६!! परंतु जो दुष्ट और क्रूर पुरुष दूसरों को मारकर अपने प्राणों का पोषण करता है उसका तो वध ही उसके लिए कल्याणकारी है क्योंकि वैसी आदत को लेकर यदि वह जीता है तो और भी पाप करता है और उन पापों के कारण नरक गामी होता है !
!!३७!! फिर मेरे सामने ही तुमने द्रौपदी से प्रतिज्ञा की थी कि मानवती जिसने तुम्हारे पुत्रों का वध किया है उसका सिर मैं उतार लाऊंगा !
!!३८!! इस पापी कुलाग्डांर आततायी ने तुम्हारे पुत्रों का वध किया है और अपने स्वामी दुर्योधन को भी दुःख पहुंचाया है इसलिए अर्जुन इसे मार ही डालो !
!!३९!! भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के धर्म की परीक्षा लेने के लिए इस प्रकार प्रेरणा की परंतु अर्जुन का ह्रदय महान था यद्यपि अव्श्रत्था माने उनके पुत्रों की हत्या की थी फिर भी अर्जुन के मन में गुरु पुत्र को मारने की इच्छा नहीं हुई !
!!४०!! इसके बाद अपने मित्र और सारथि श्री कृष्ण के साथ वे अपने युद्ध शिविर में पहुंचे वहां अपने मृत पुत्रों के लिए शोक करती हुई द्रौपदी को उसे सौंप दिया !
!!४१!! द्रौपदी ने देखा कि अश्वत्थामा पशु की तरह बांध कर लाया गया है निन्दित कर्म करने के कारण उसका मुख नीचे की ओर झुका हुआ है अपना अनिष्ट करने वाले गुरु पुत्र अश्वत्थामा को इस प्रकार अपमानित देख कर द्रौपदी का कोमल ह्रदय कृपा से भर आया और उसने अश्वत्थामा को नमस्कार किया !
!!४२!! गुरु पुत्र का इस प्रकार बांधकर लाया जाना सती द्रौपदी को सहन नहीं हुआ उसने कहा छोड़ दो इन्हें छोड़ दो ये ब्राह्मण हैं हम लोगों के अत्यंत पूजनीय हैं !
!!४३!! जिनकी कृपा से आपने रहस्य के साथ सारे धनु र्वेद और प्रयोग तथा उपसंहार के साथ संपूर्ण शस्त्रा शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया है वे आपके आचार्य द्रोण ही पुत्र के रूप में आपके सामने खड़े हैं उनकी अर्धाग्डि़नी कृपी अपने वीर पुत्र की ममता से ही अपने पति का अनुगमन नहीं कर सकीं वे अभी जीवित है !
!!४४-४५!! माहाभाग्यवान आर्यपुत्र आप तो बड़े धर्मज्ञ है जिस गुरु वंश की नित्य पूजा और वंदना करनी चाहिए उसीको व्यथा पहुंचाना आपके योग्य कार्य नहीं है !
!!४६!! जैसे अपने बच्चों के मर जाने से मैं दुःखी होकर रो रही हूं और मेरी आंखों से बार-बार आंसू निकल रहे हैं वैसे ही इनकी माता पतिव्रता गौतमी न रोयें !
!!४७!! जो उच्छृख्ड़ल राजा अपने कुकृत्यों से ब्राह्मण कुल को कुपित कर देते हैं वह कुपित ब्राम्हण कुल उन राजाओं को सपरिवार शोका ग्रिमें डाल कर शीघ्र ही भस्म कर देता है !
!!४८!! सूत जी ने कहा___शौनकादि ऋषियो ने द्रौपदी की बात धर्म और न्याय के अनुकूल थी उसमें कपट नहीं था करुणा और समता थी अत एव राजा युधिष्ठिर ने रानी के इन हित भरे श्रेष्ठ वचनों का अभिनंदन किया !
!!४९!! साथ ही नकुल सहदेव सात्यकि अर्जुन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण और वहां पर उपस्थित सभी नर नारियों द्रौपदी की बात का समर्थन किया !
!!५०!! उस समय क्रोधित होकर भीमसेन ने कहा जिसने सोते हुए बच्चों को न अपने लिए और न अपने स्वामी के लिए बल्कि व्यर्थ ही मार डाला उसका तो वध ही उत्तम है !
!!५१!! भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी और भीमसेन की बात सुनकर और अर्जुन की ओर देखकर कुछ हंसते हुए से कहा !
!!५२!! भगवान श्रीकृष्ण बोले____पतित ब्राह्मण का भी वध नहीं करना चाहिए और आततायी को मार ही डालना चाहिए शास्त्रों में मैंने ही ये दोनों बातें कही है इसलिए मेरी दोनों आज्ञाओं का पालन करो !
!!५३!! तुमने द्रौपदी को सांत्वना देते समय जो प्रतिज्ञा की थी उसे भी सत्य करो साथ ही भीम सेन द्रौपदी और मुझे जो प्रिय हो वह भी करो !
!!५४!! सूतजी कहते हैैं____अर्जुन भगवान के हृदय की बात तुरंत ताड़ गये और उन्होंने अपनी तलवार हे अश्वत्थामा के सिर की मणि उसके बालों के साथ उतार ली !
!!५५!! बालकों की हत्या करने से वह श्री हीन तो पहले ही हो गया था अब मणि और ब्रह्मतेज से भी रहित हो गया इसके बाद उन्होंने स्स्सीका बन्धन खोल कर उसे शिविर से निकाल दिया !
!!५६!! मूंड देना धन छीन लेना और स्थान से बाहर निकाल देना यही ब्राह्मणा धमों का वध है उनके लिए इससे भिन्न शरीरिक वध का विधान नहीं है !
!!५७!! पुत्रों की मृत्यु से द्रौपदी और पांडव सभी शोकानपतुर हो रहे थे अब उन्होंने अपने मरे हुए भाई बंधुओं की दाहादि अंत्येष्टि क्रिया कि
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