!!३४!! सूत जी कहते हैं_____ अत एव उन्मार्ग गामियों के शासक भगवान श्री कृष्ण के परमधाम पधार जाने पर इन मर्यादा तोड़ने वालों को आज मैं दण्ड देता हूं मेरा तपोबल देखो !
!!३५!! अपने साथी बालकों से इस प्रकार कहकर क्रोध से लाल लाल आंखों वाले उस ऋषि कुमार ने कौशिकी नदी के जल से आचमन करके अपने वाणी रूपी वज्र का प्रयोग किया !
!!३६!! कुलागार परीक्षित ने मेरे पिता का अपमान करके मर्यादा का उल्लंघन किया है इसलिये मेरी प्रेरणा से आज के सातवें दिन उसे तक्षक सर्प डस लेगा !
!!३७!! इसके बाद वह बालक अपने आश्रम पर आया और अपने पिता के गले में सांप देख कर उसे बड़ा दुःख हुआ तथा वह ढाड़ मार कर रोने लगा !
!!३८!! विप्र वर शौनक जी शमीक मुनि ने अपने पुत्र का रोना चिल्लाना सुनकर धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलीं और देखा कि उनके गले में एक मरा सांप पड़ा है !
!!३९!! उसे फेंक कर उन्होंने अपने पुत्र से पूछा बेटा तुम क्यों रो रहे हो किसने तुम्हारा अपकार किया है उनके इस प्रकार पूछने पर बालक ने सारा हाल कह दिया !
!!४०!! ब्रह्मर्षि शमीक ने राजा के शाप की बात सुनकर अपने पुत्र का अभिनंदन नहीं किया उनकी दुष्टि में परिक्षित शाप के योग्य नहीं थे उन्होंने कहा ओह मूर्ख बालक तुने बड़ा पाप किया खेद है कि उनकी थोड़ी सी गलती के लिये तूने उनको इतना बड़ा दण्ड दिया !
!!४१!! तेरी बुद्धि अभी कच्ची है तुझे भगवत्स्वरूप राजा को साधारण मनुष्यों के समान नहीं समझना चाहिये क्योंकि राजा के दुस्सह तेज से सुरक्षित और निर्भय रहकर ही प्रजा अपना कल्याण सम्पादन करती है !
!!४२!! जिस समय राजा का रूप धारण करके भगवान पृथ्वी पर नहीं दिखायी देंगे उस समय चोर बढ़ जायंगे और अरक्षित भेडो़के समान एक क्षण में ही लोगों का नाश हो जायगा !
!!४३!! राजा के नष्ट हो जाने पर धन आदि चुराने वाले चोर जो पाप करेंगे उसके साथ हमारा कोई सम्बन्ध न होने पर भी वह हम पर भी लागू होगा क्योंकि राजा के न रहने पर लूटेरे बढ़ जाते हैं और वे आपस में मार पीट गाली-गलौज करते हैं साथ ही पशु स्त्री और धन सम्पत्ति भी लूट लेते हैं !
!!४४!! उस समय मनुष्यों का वर्णाश्रमाचार युक्त वैदिक आर्य धर्म लुप्त हो जाता है अर्थ लोभ और काम वासना के विवश होकर लोग कुत्तों और बंदरों के समान वर्णसकर हो जाते हैं !
!!४५!! सम्राट परीक्षित तो बड़े ही यशस्वी और धर्मधुरन्धर है उन्होंने बहुत से अश्वमेध यज्ञ किये हैं और वे भगवान के परम प्यारे भक्त हैं वे ही राजर्षि भूख प्यास से व्याकुल होकर हमारे आश्रम आये थे वे शाप के योग्य कदापि नहीं है !
!!४६!! इस नासमझ बालक ने हमारे निष्पाप सेवक राजा का अपराध किया है सर्वात्मा भगवान कृपा करके इसे क्षमा करें !
!!४७!! भगवान के भक्तों में भी बदला लेने की शक्ति होती है परंतु वे दूसरों के द्वारा किये हुए अपमान धोखेबाजी गाली गलौज आक्षेप और मार पीट का कोई बदला नहीं लेते !
!!४८!! महामुनि शमीक को पुत्र के अपराध पर बड़ा पश्चाताप हुआ राजा परीक्षित ने जो उनका अपमान किया था उस पर तो उन्होने ध्यान ही नहीं दिया !
!!४९!! महात्माओं का स्वभाव ही ऐसा होता है कि जगत में जब दूसरे लोग उन्हें सुख दुःखादि द्वन्द्वों में डाल देते हैं तब भी वे प्रायः हर्षित या व्यथित नहीं होते क्योंकि आत्मा का स्वरूप तो गुणों से सर्वथा परे है !
५० सूत जी कहते हैं_____राजधानी में पहुंचने पर राजा परीक्षित को अपने उस निंदनीय कर्म के लिए बड़ा पश्चाताप हुआ वे अत्यंत उदास हो गये और सोचने लगे मैंने निरपराध एवं अपना तेज छिपाये हुए ब्राह्मण के साथ अनार्य पुरुषों के समान बड़ा नीच व्यवहार किया यह बड़े खेद की बात है !
!!१!! अवश्य ही उन महात्मा के अपमान के फलस्वरूप शीघ्र से शीघ्र मुझ पर कोई घोर विपत्ति आवेगी मैं भी ऐसा ही चाहता हूं क्योंकि उससे मेरे पाप का प्रायश्चित हो जाएगा और फिर कभी मैं ऐसा काम करने का दु:साहस नहीं करूंगा
!!२!! ब्राह्मणों की क्रोधाग्नि आज ही मेरे राज्य सेना और भरे पूरे खजाने को जलाकर खाक कर दे जिससे फिर कभी मुझे दुष्ट कि ब्राह्मण देवता और गौओं के प्रति ऐसी पाप बुद्धि न हो !
!!३!! वे इस प्रकार चिन्ता कर ही रहे थे कि उन्हें मालूम हुआ ऋषि कुमार के शांप से तक्षक मुझे डसेगा उन्हें वह धधकती हुई आग के समान तक्षक का डसना बहुत भला मासूम हुआ उन्होंने सोचा कि बहुत दिनों से मैं संसार में आसक्त हो रहा था अब मुझे शीघ्र वैराग्य होने का कारण प्राप्त हो गया !
!!४!! वे इस लोक और परलोक के भोगों को तो पहले से ही तुच्छ और त्याज्य समझते थे अब उनका स्वरूप त्याग करके भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों की सेवा को ही सर्वोपरि मानकर आमरण अनशन व्रत लेकर वे गंगा तट पर बैठ गये !
!!५!! गंगा जी का जल भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों का वह पराग लेकर प्रवाहित होता है जो श्रीमती तुलसी की गन्ध से मिश्रित है यही कारण है कि वे लोकपालों के सहित ऊपर नीचे के समस्त लोकों को पवित्र करती है कौन ऐसा मरणासन्न पुरुष होगा जो उनका सेवन न करेगा !
!!६!! इस प्रकार गंगा जी के तट पर आमरण अनशन का निश्चय करके उन्होंने समस्त आसक्तियों का परित्याग कर दिया और वे मुनियों का व्रत स्वीकार करके अनन्यभाव से श्री कृष्ण के चरण कमलों का ध्यान करने लगे !
!!७!! उस समय त्रिलोकी को पवित्र करने वाले बड़े-बड़े महानुभाव ऋषि मुनि अपने शिष्यों के साथ वहां पधारे संत जन प्रायः तीर्थ यात्रा के बहाने स्वयं उन तीर्थ स्थानों को ही पवित्र करते हैं !
!!८!! उस समय वहां पर अत्रि वसिष्ठ च्यवन शरद्वान अरिष्ट नेमि भृगु अंगिरा पराशर विश्वामित्र परशुराम उतथ्य इन्द्रप्रमद इध्मवाह मेधातिथि देवल आष्टिषेण भारद्वाज गौतम पिप्पलाद मैत्रेय और्व कवष अगस्त्य भगवान व्यास नारद तथा इनके अतिरिक्त और भी कई श्रेष्ठ देवर्षि ब्रह्मार्षि तथा अरुणादि राजर्षिवर्यों का शुभागमन हुआ इस प्रकार विभिन्न गोत्रों के मुख्य मुख्य ऋषियों को एकत्र देखकर राजा ने सबका यथा योग्य सत्कार किया और उनके चरणों पर सिर रखकर वन्दना की !
!!९-११!! जब सब लोग आराम से अपने अपने आसनों पर बैठ गये तब महाराज परीक्षित ने उन्हें फिर से प्रणाम किया और उनके सामने खड़े होकर शुद्ध हृदय से अञ्जलि बांधकर वे जो कुछ करना चाहते थे उसे सुनाने लगे !
!!१२!! राजा परीक्षित ने कहा_____अहो समस्त राजाओं में हम धन्य है धन्य तम हैं क्योंकि अपने शील स्वभाव के कारण हम आप महापुरुषों के कृपा पात्र बन गये हैं राजवंश के लोग प्रायः निन्दित कर्म करने के कारण ब्राह्मणों के चरण धोवन से दूर पड़ जाते हैं यह कितने खेद की बात है !
!!१३!! मैं भी राजा ही हूं निरंतर देह गेह में आसक्त रहने के कारण मैं भी पापरूप ही हो गया हूं इसी से स्वयं भगवान ही ब्राह्मण के शाप के रूप में मुझ पर कृपा करने के लिये पधारे है यह शाप वैराग्य उत्पन्न करने वाला है क्योंकि इस प्रकार के शाप से संसारा सक्त पुरुष भयभीत होकर विरक्त हो जाया करते हैं !
!!१४!! ब्राह्मणों अब मैंने अपने चित्त को भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया है आप लोग और मां गंगा जी शरणागत जानकर मुझ पर अनुग्रह करें ब्राह्मण कुमार के शाप से प्रेरित कोई दूसरा कपट से तक्षक का रूप धरकर मुझे डस लें अथवा स्वयं तक्षक आकर डस ले; इसकी मुझें तनिक भी परवा नहीं है आप लोग कृपा करके भगवान की रसमयी लीलाओं का गायन करें !
!!१५!! मैं आप ब्राह्मणों के चरणों में प्रणाम करके पुनः यही प्रार्थना करता हूं कि मुझे कर्म वश चाहे जिस योनि में जन्म लेना पड़े भगवान श्री कृष्ण के चरणों में मेरा अनुराग हो उनके चरणाश्रित महात्माओं से विशेष प्रीति हो और जगत के समस्त प्राणियों के प्रति मेरी एक सी मैत्री रहे ऐसा आप आशीर्वाद दीजिये !
!!१६!! महाराजा परीक्षित परम धीर थे ऐसा दृढ़ निश्चय करके गंगा जी के दक्षिण तट पर पूर्वाग्र कुशों के आसन पर उत्तर मुख होकर बैठ गये राज काज का भार तो उन्होंने पहले ही अपने पुत्र जनमेजय को सौंप दिया था !
!!१७!! पृथ्वी के एक च्छत्र सम्राट परीक्षित जब इस प्रकार आमरण अनशन का निश्चय करके बैठ गये तब आकाश में स्थित देवता लोग बड़े आनन्द से उनकी प्रशंसा करते हुए वहां पृथ्वी पर पुष्पों की वर्षा करने लगे तथा उनके नगारे बार-बार बजने लगे !
!!१८!! सभी उपस्थित महर्षियों ने परीक्षित के निश्चय की प्रशंसा की और साधु साधु कह कर उनका अनुमोदन किया ऋषि लोग तो स्वभाव से ही लोगों पर अनुग्रह की वर्षा करते रहते हैं यही नहीं उनकी सारी शक्ति लोक पर कृपा करने के लिये ही होती है उन लोगों ने भगवान श्री कृष्ण के गुणों से प्रभावित परीक्षित के प्रति उनके अनुरूप वचन कहे !
!!१९!! राजर्षि शिरोमणे भगवान श्री कृष्ण के सेवक और अनुयायी आप पाण्डु वंशियों के लिये यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि आप लोगों ने भगवान की सन्निधि प्राप्त करने की आकांक्षा से उस राज सिंहासन का एक क्षण में ही परित्याग कर दिया जिसकी सेवा बड़े-बड़े राजा अपने मुकुटों से करते थे !
!!२०!! हम सब तब तक यहीं रहेंगे जब तक ये भगवान के परम भक्त परीक्षित अपने नश्वर शरीर को छोड़कर माया दोष एवं शोक से रहित भगवद्धाम में नहीं चले जाते !
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