देवर्षि नारद की भक्ति से भेंट _भाग-२७

 !!३२-३३!! पृथ्वी ने कहा______ तुम अपने तीन चरणों के कम हो जाने से मन ही मन कुढ़ रहे थे अतः अपने पुरुषार्थ से तुम्हें अपने ही अन्दर पुनः सब अंगों से पूर्ण एवं स्वस्थ कर देने के लिये वे अत्यंत रमणी य श्याम सुन्दर विग्रह से यदुवंश में प्रकट हुए और मेरे बड़े भारी भार को जो असुरवंशी  राजाओं की सैकड़ों अक्षौहिणियों के रूप में था नष्ट कर डाला क्योंकि वे परम स्वतंत्र थे !

देवर्षि- नारद- की- भक्ति -से -भेंट _भाग-२७


!!३४!! जिन्होंने अपनी प्रेम भरी चितवन मनोहर मुसकान और मीठी मीठी बातों से सत्यभामा आदि मधुमयी मानिनियों के मानके साथ धीरज को भी छीन लिया था और जिनके चरण कमलों  के स्पर्श से मैं निरन्तर आनन्द से पुलकित रहती थी उन पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण का विरह भला कौन सह सकती है !


!!३५!! धर्म और पृथ्वी इस प्रकार आपस में बातचीत कर ही रहे थे कि उसी समय राजर्षि परीक्षित पूर्व वाहिनी सरस्वती  के तट पर आ पहुंचे !


!!३६!! सूत जी कहते हैं_____ शौनक जी वहां पहुंचकर राजा परीक्षित ने देखा कि एक राज वेषधारी शूद्र हाथ में डंडा लिये हुए हैं और गाय बैल के एक जोड़े को इस तरह पीटता जा रहा है जैसे उनका कोई स्वामी ही न हो !


!!१!! वह कमल तन्तु के समान श्वेत रंग का बैल एक पैर से खड़ा कांप रहा था शूद्र की ताड़ना से पीड़ित और भयभीत होकर मूत्र त्याग कर रहा था !


!!२!! धर्मो पयोगी दूध घी आदि हविष्य  पदार्थों को देने वाली वह गाय भी बार-बार शूद्र के पैरों की ठोकरें खाकर अत्यंत दीन हो रही थी एक तो वह स्वयं ही दुबली पतली थी दूसरे उसका बछड़ा भी उसके पास नहीं था उसे भूख लगी हुई थी और उसकी आंखों से आंसू बहते जा रहे थे !


!!३!! स्वर्णजटित रथ पर चढ़े हुए राजा परीक्षित ने अपना धनुष चढ़ाकर मेघ के समान गम्भीर वाणी से उसको ललकारा !


!!४!! अरे तू कौन है जो बलवान होकर भी मेरे राज्य के इन दुर्बल प्राणियों को बलपूर्वक मार रहा है तूने नट की भांति वेष तो राजाका सा बना रखा है परंतु कर्म से तू शूद्र जान पड़ता है !


!!५!! हमारे दादा अर्जुन के साथ भगवान श्रीकृष्ण के परम धाम पधार जाने पर इस प्रकार निर्जन स्थान में निरपरा धोंपर  प्रहार करने वाला तू अपराधी है अतः वध के  योग्य है !


!!६!! उन्होंने धर्म से पूछा_____कमल- नाल के समान आपका श्वेत वर्ण है तीन पैर न होने पर भी आप एक ही पैर से चलते फिरते हैं यह देखकर मुझे बड़ा कष्ट हो रहा है बतलाये आप क्या बैल के रूप में कोई देवता है!


!!७!! अभी यह भूमण्डल कुरुवंशी  नरपतियों के बाहुबल से सुरक्षित है इस में आपके सिवा और किसी भी प्राणी की आंखों से शोक के आंसू बहते मैंने नहीं देखे !


!!८!! धेनु पुत्र अब आप शोक न करें इस शूद्र से निर्भय हो जायं गोमाता मैं दुष्टों को दण्ड देने वाला हूं अब आप रोयें नहीं आप का कल्याण हो !


!!९!! देवि जिस राजा के राज्य में दुष्टों के उपद्रव से सारी प्रजा त्रस्त रहती है उस मत वाले राजा की कीर्ति आयु ऐश्वर्य और पर लोक नष्ट हो जाते हैं !


!!१०!! राजाओं का परम धर्म यही है कि वे दु:खियों का दुःख दूर करें यह महादुष्ट और प्राणियों को पीड़ित करने वाला है अतः मैं अभी इसे मार डालूंगा !


!!११!! सुरभि नन्दन आप तो चार पैर वाले जीव हैं आपके तीन पैर किसने काट डाले श्री कृष्ण के अनुयायी राजाओं के राज्य में कभी कोई भी आपकी तरह दुःखी न हो ! 


!!१२!! वृषभ आप का कल्याण हो बताइये आप जैसे निरपराध साधुओं का अंग भंग करके किस दुष्ट ने पाण्डवों की कीर्ति में कलंक लगाया है !


!!१३!! जो किसी निरपराध प्राणी को सताता है उसे चाहे वह कहीं भी रहे मेरा भय अवश्य होगा दुष्टों का दमन करने से साधुओं का कल्याण हो होता है !


!!१४!! जो उछण्ड व्यक्ति  निरपराध प्राणियों को दुःख देता है वह चाहे साक्षात देवता ही क्यों न हो मैं उसकी बाजूबंद से विभूषित भुजाको काट डालूंगा !


!!१५!! बिना आपत्ति काल के मर्यादा का उल्लंघन करने वालों को शास्त्रा नुसार दण्ड देते हुए अपने धर्म में स्थित लोगों का पालन करना राजाओं का परम धर्म है !


!!१६!!  धर्म ने कहा_____राजन आप महाराज पाण्डु के वंशज हैं आपका इस प्रकार दुःखियों को आश्वासन देना आपके योग्य ही है  क्योंकि आपके पूर्वजों के श्रेष्ठ गुणों ने भगवान श्रीकृष्ण को उनका सारथि और दूत आदि बना दिया था !


!!१७!! नरेन्द्र शास्त्रों के विभिन्न वचनों से मोहित होने के कारण हम उस पुरुष को नहीं जानते जिससे क्लेशों से के कारण उत्पन्न होते हैं !


!!१८!! जो लोग किसी भी प्रकार के द्वैत को स्वीकार नहीं करते  वे अपने आप को ही अपने दु:ख का कारण बतलाते हैं कोई प्रारब्ध को कारण बत लाते हैं तो कोई कर्म को कुछ लोग स्वभाव को तो कुछ लोग ईश्वर को दुःख का कारण मानते हैं !


!!१९!! कहीं-कहीं का ऐसा भी इस निश्चय है कि दुःख का कारण न तो तर्क के द्वारा जाना जा सकता है और न वाणी के द्वारा बत लाया जा सकता है राजर्षे अब इनमें कौन- सा मत ठीक है यह आप अपनी बुद्धि से ही विचार लीजिये !


!!२०!! सूत जी कहते हैं_____ऋषि श्रेष्ठ शौनक जी धर्म का यह प्रवचन सुनकर सम्राट परीक्षित बहुत प्रसन्न हुए उनका खेद मिट गया उन्होंने शान्तचित्त होकर उनसे कहा !


!!२१!! परीक्षित ने कहा____धर्म का तत्व जानने वाले वृषभ देव आप धर्म का उपदेश कर रहे हैं अवश्य ही आप वृषभ के  रूप में स्वयं धर्म है (आपने अपने को दुःख देने वाले का नाम इसलिये नहीं बताया है कि ) अधर्म करने वाले को जो नरकादि प्राप्त होते हैं वे ही चुगली करने वाले को भी मिलते हैं !


!!२२!! अथवा यही सिद्धांत निश्चय है कि प्राणियों के मन और वाणी से परमेश्वर की माया के स्वरूप का निरूपण नहीं किया जा सकता !


!!२३!! धर्मदेव सत्ययुग में आपके चार चरण थे तप पवित्रता दया और सत्य इस समय अधर्म के अंश गर्व आसक्ति और  मद से तीन चरण नष्ट हो चुके हैं !


!!२४!! अब आप का चौथा चरण केवल सत्य ही बच रहा है उसी के बल पर आप जी रहे हैं असत्य से पुष्ट हुआ यह अधर्म रूप कलियुग उसे भी ग्रास कर लेना चाहता है !


!!२५!! ये गौ माता साक्षात पृथ्वी है ! भगवान ने इनका भारी बोझ उतार दिया था और ये उनके राशि राशि सौंदर्य बिखेरने वाले चरण चिन्हों से सर्वत्र उत्सवमयी हो गयी थीं !


!!२६!! अब ये उनसे बिछूड़ हो गयी है वे साध्वी अभागिनी के समान नेत्रों में जल भरकर यह चिन्ता कर रही है कि अब राजा का स्वांग बनाकर ब्राह्मण द्रोही शूद्र मुझे भोंगेंगे !


!!२७!! महारथी परीक्षित ने इस प्रकार धर्म और पृथ्वी को सांत्वना दी फिर उन्होंने अधर्म के कारण रूप कलियुग को मारने के लिये तीक्ष्ण तलवार उठायी !


!!२८!! कलियुग ताड़ गया कि ये तो अब मुझे मार ही डालना चाहते हैं अतः झटपट उसने अपने राज चिन्ह उतार डाले और भयविहल होकर उनके चरणों में अपना सिर रख दिया !


!!२९!! परीक्षित बड़े यशस्वी दीनवत्सल और शरणागत रक्षक थे उन्होंने जब कलियुग को अपने पैरों पर पड़े देखा तो कृपा करके उसको मारा नहीं अपितु  हंसते हुए से उससे कहा !


!!३०!! परीक्षित बोले_____जब तु हाथ जोड़कर शरण आ गया तब अर्जुन के यशस्वी वंश में उत्पन्न हुए किसी भी वीर से तुझे कोई भय नहीं है परंतु तू अधर्म का सहायक है इसलिए तुझे मेरे राज्य में बिल्कुल नहीं रहना चाहिये !


!!३१!!  तेरे राजाओं के शरीर में रहने से ही लोभ झूठ चोरी दुष्टता स्वधर्म त्याग दरिद्रता कपट कलह दम्भ  और दूसरे पापों की बढ़ती हो रही है !


!!३२!! अतः अधर्म के साथी इस ब्राह्मवर्त में तू एक क्षण के लिये भी न ठहरना क्योंकि यह धर्म और सत्य का निवास स्थान है  इस क्षेत्र में यज्ञ विधि के जानने वाले महात्मा यज्ञों के द्वारा यज्ञ पुरुष भगवान आराधना करते रहते हैं !


!!३३!! इस देश में भगवान श्रीहरि यज्ञों के रूप में निवास करते हैं यज्ञों के द्वारा उनकी पूजा होती है और वे यज्ञ करने वालों  का कल्याण करते हैं वे सर्वात्मा भगवान वायु की भांति समस्त चराचर जीवों के भीतर और बाहर एकरस स्थित रहते हुए उनकी कामनाओं को पूर्ण करते रहते हैं !


!!३४!! सूत जी कहते हैं_____परिक्षित की यह आज्ञा सुनकर कलियुग सिहर उठा यमराज के समान मारने के लिये उद्यत हाथ में तलवार लिये हुए परिक्षित से वह बोला !


!!३५!! कलिने कहा____सार्व भौम आपकी आज्ञा से जहां कहीं भी मैं रहने का विचार करता हूं वहीं देखता हूं कि आप धनुष पर बाण चढ़ाये खड़े हैं !


!!३६!! धार्मिक शिरोमणे आप मुझे वह स्थान बतलाइये जहां मैं आपकी आज्ञा का पालन करता हुआ स्थिर होकर रह सकूं !


!!३७!! सूत जी कहते हैं____कलियुग की प्रार्थना स्वीकार करके राजा परीक्षित ने उसे चार स्थान दिये द्यूत मद्यपान स्त्री संग और हिंसा इन स्थानों में क्रमश असत्य मद आसक्ति और निर्दयता ये चार प्रकार के अधर्म निवास करते हैं !


!!३८!! उसने और भी स्थान मांगे तब समर्थ परिचित ने उसे रहने के लिए एक और स्थान सुवर्ण ( धन) दिया इस प्रकार कलियुग के पांच स्थान हो गये झूठ मद काम वैर और रजोगुण !




















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