!!४७-४८!! सूत जी कहते हैं______ संयमी एवं श्री कृष्ण के प्रेमावेश में मुग्ध भगवन्मय विदुर जी ने भी अपने शरीर को प्रभास क्षेत्र में त्याग दिया उस समय उन्हें लेने के लिए आये हुए पितरों के साथ वे अपने लोक( यमलोक) को चले गये
!!४९!! द्रौपदी ने देखा कि अब पाण्डव लोग निरपेक्ष हो गये हैं तब वे अनन्य प्रेम से भगवान श्री कृष्ण का ही चिन्तन करके उन्हें प्राप्त हो गयीं !
!!५०!! भगवान के प्यारे भक्त पाण्डवों के महाप्रयाण की इस परम पवित्र और मंगलमयी कथा को जो पुरुष श्रद्धा से सुनता है वह निश्चय ही भगवान की भक्ति और मोक्ष प्राप्त करता है !
!!५१!! सूत जी कहते हैं_____ शौनक जी पाण्डवों के महाप्रयाण के पश्चात भगवान के परम भक्त राजा परीक्षित श्रेष्ठ ब्राह्मणों की शिक्षा के अनुसार पृथ्वी का शासन करने लगे उनके जन्म के समय ज्योतिषियों ने उनके सम्बन्ध में जो कुछ कहा था वास्तव में वे सभी महान गुण उनमें विद्यमान थे !
!!१!! उन्होंने उत्तर की पुत्री इरावती से विवाह किया उससे उन्होंने जनमे जय आदि चार पुत्र उत्पन्न किये !
!!२!! तथा कृपाचार्य को आचार्य बनाकर उन्होंने गंगा के तट पर तीन अश्वमेध यज्ञ किए जिनमें ब्राह्मणों को पुष्कल दक्षिणा दी गयी उन यज्ञों में देवताओं ने प्रत्यक्ष रूप में प्रकट होकर अपना भाग ग्रहण किया था !
!!३!! एक बार दिग्विजय करते समय उन्होंने देखा कि शुद्र के रूप में कलियुग राजा का वेष धारण करके एक गाय और बैल के जोड़े को ठोकरों से मार रहा है तब उन्होंने उसे बलपूर्वक पकड़ कर दण्ड दिया !
!!४!! शौनक जी ने पूछा_____महा भाग्यवान सूतजी दिग्विजय के समय महाराज परीक्षित ने कलियुग को दण्ड देकर ही क्यों छोड़ दिया मार क्यों नहीं डाला क्योंकि राजा का वेष धारण करने पर भी था तो वह अधम शूद्र ही जिसने गाय को लात से मारा था यदि यह प्रसंग भगवान श्री कृष्ण की लीला से अथवा उनके चरण कमलों के मकरन्द रसका पान करने वाले रसिक महानुभावों से सम्बन्ध रखता हो तो अवश्य कहिये दूसरी व्यर्थ की बातों से क्या लाभ उन में तो आयु व्यर्थ नष्ट होती है !
!!५-६!! प्यारे सूत जी जो लोग चाहते तो है मोक्ष परंतु अल्पायु होने के कारण मृत्यु से ग्रस्त हो रहे हैं उनके कल्याण के लिए भगवान यम का आवाहन करके उन्हें यहां शांति कर्म में नियुक्त कर दिया गया है !
!!७!! जब तक यमराज यहां इस कर्म में नियुक्त है तब तक किसी की मृत्यु नहीं होगी मृत्यु से ग्रस्त मनुष्य लोक के जीव भी भगवान की सुधा तुल्य लीला कथा का पान कर सकें इसीलिए महर्षियों ने भगवान यमको यहां बुलाया है !
!!८!! एक तो थोड़ी आयु और दूसरे कम समझ ऐसी अवस्था में संसार के मन्दभाग्य विषयी पुरुषों की आयु व्यर्थ ही बीती जा रही है नींद में रात और व्यर्थ के कामों में दिन !
!!९!! सूत जी ने कहा_____जिस समय राजा परीक्षित कुरुजागल देश में सम्राट के रूप में निवास कर रहे थे उस समय उन्होंने सुना कि मेरी सेना द्वारा सुरक्षित साम्राज्य में कलियुग का प्रवेश हो गया है इस समाचार से उन्हें दुःख तो अवश्य हुआ परंतु यह सोच कर कि युद्ध करने का अवसर हाथ लगा वे उतने दुःखी नहीं हुए इसके बाद युद्धवीर परिक्षित ने धनुष हाथ में ले लिया !
!!१०!! वे श्यामवर्ण के घोड़ों से जूते हुए सिंह की ध्वजा वाले सुसज्जित रथ पर सवार होकर दिग्विजय करने के लिये नगर से बाहर निकल पड़े उस समय रथ हाथी घोड़े और पैदल सेना उनके साथ साथ चल रही थी !
!!११!! उन्होंने भद्राश्व केतुमाल भारत उत्तर कुरु और कीम्पुरुष आदि सभी वर्षों को जीतकर वहां के राजाओं से भेंट ली !
!!१२!! उन्हें उन देशों में सर्वत्र अपने पूर्वज महात्माओं का सुयश सुनने को मिला उस यशोगान से पद पद पर भगवान श्री कृष्ण की महिमा प्रकट होती थी !
!!१३!! इसके साथ ही उन्हें यह भी सुनने को मिलता था कि भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र की ज्वाला से किस प्रकार उनकी रक्षा की थी यदुवंशी और पाण्डवों में परस्पर कितना प्रेम था तथा पाण्डवों की भगवान श्रीकृष्ण में कितनी भक्ति थी !
!!१४!! जो लोग उन्हें ये चरित्र सुनाते उन पर महामना राजा परीक्षित बहुत प्रसन्न होते उनके नेत्र प्रेम से खिल उठते वे बड़ी उदारता से उन्हें बहुमूल्य वस्त्र और मणियों के हार उपहाररूप में देते !
!!१५!! वे सुनते की भगवान श्री कृष्ण ने प्रेम परवश होकर पाण्डवों के सारथि का काम किया उनके सभासद बने यहां तक कि उनके मन के अनुसार काम करके उनकी सेवा भी कि उनके सखा तो थे ही दूत भी बने वे रात को शस्त्र ग्रहण करके विरासन से बैठ जाते और शिविर का पहरा देते उनके पीछे-पीछे चलते स्तुति करते तथा प्रणाम करते इतना ही नहीं अपने प्रेमी पाण्डवों के चरणों में उन्होंने सारे जगत को झुका दिया तब परीक्षित की भक्ति भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों में और भी बढ़ जाती।
!!१६!! इस प्रकार वे दिन दिन पाण्डवों के आचरण का अनुसरण करते हुए दिग्विजय कर रहे थे उन्हीं दिनों उनके शिविर से थोड़ी ही दूर पर एक आश्चर्यजनक घटना घटी वह मैं आपको सुनाता हूं !
!!१७!! धर्म बैल का रूप धारण करके एक पैर से घूम रहा था एक स्थान पर उसे गाय के रूप में पृथ्वी मिली पुत्र की मृत्यु से दुःखिनी माता के समान उसके नेत्रों से आंसुओं के झरने झर रहे थे उसका शरीर श्री हीन हो गया था धर्म पृथ्वी से पूछने लगा !
!!१८!! धर्म ने कहा_____कल्याणि कुशल से तो हो न तुम्हारा मुख कुछ-कुछ मलिन हो रहा है तुम श्रीहीन हो रही हो मालूम होता है तुम्हारे ह्रदय में कुछ न कुछ दुःख अवश्य है क्या तुम्हारा कोई सम्बन्धी दूर देश में चला गया है जिसके लिए तुम इतनी चिन्ता कर रही हो!
!!१९!! कहीं तुम मेरी तो चिन्ता नहीं कर रही हो कि अब इसके तीन पैर टूट गये एक ही पैर रह गया है सम्भव है तुम अपने लिये शोक कर रही हो कि अब शूद्र तुम्हारे ऊपर शासन करेंगे तुम्हें इन देवताओं के लिये भी खेद हो सकता है जिन्हें अब यज्ञों में आहुति नहीं दी जाती अथवा उस प्रजा के लिये भी जो वर्षा न होने के कारण अकाल एवं दुर्भिक्ष से पीड़ित हो रही हैं!
!!२०!! देवि क्या तुम राक्षस सरेखे मनुष्यों के द्वारा सतायी हुई अरक्षित स्त्रियों एवं आर्तबालकों के लिये शोक कर रही हो सम्भव है विद्या अब कुकर्मी ब्राह्मणों के चंगुल में पड़ गयी है और ब्राह्मण विप्रद्रोही राजाओं की सेवा करने लगे हैं और इसी का तुम्हें दुःख हो !
!!२१!! आज के नाम मात्र के राजा तो सोलहों आने कलियुगी हो गये हैं उन्होंने बड़े-बड़े देशों को भी उजाड़ डाला है क्या तुम उन राजाओं या देशों के लिये शोक कर रही हो आज की जनता खान पान वस्त्र स्नान और स्त्री सहवास आदि में शास्त्रीय नियमों का पालन न करके स्वेच्छाचार कर रही है क्या इसके लिये तुम दुःखी हो !
!!२२!! मा पृथ्वी अब समझ में आया हो न हो तुम्हें भगवान श्री कृष्ण की याद आ रही होगी क्योंकि उन्होंने तुम्हारा भार उतारने के लिए ही अवतार लिया था और ऐसी लिलाएं कि थी जो मोक्ष का भी अवलम्बन है अब उनके लीला स्वर्ण कर लेने पर उनके परित्याग से तुम दुःखी हो रही हो !
!!२३!! देवि तुम तो धन रत्नों की खान हो तुम अपने कलेश का कारण जिससे तुम इतनी दुर्बल हो गयी हो मुझे बतलाओ मालूम होता है बड़े-बड़े बलवा नों को भी हरा देने वाले काल ने देवताओं के द्वारा वन्दनीय तुम्हारे सौभाग्य को छीन लिया है !
!!२४!! पृथ्वी ने कहा_____धर्म तुम मुझसे जो कुछ पूछ रहे हो वह स्वयं जानते हो जिन भगवान के सहारे तुम सारे संसार को सुख पहुंचाने वाले अपने चारों चरणों से युक्त थे, जिसमें सत्य, पवित्रता, दया ,क्षमा, त्याग , सन्तोष , सरलता, शम दम तप समता ,तितिक्षा, उपरति शास्त्रविचार , ज्ञान ,वैराग्य, ऐश्वर्य ,वीरता, तेज, बल, स्मृति , स्वतंत्रता, कौशल, कान्ति, धैर्य ,कोमलता ,निर्भीकता, विनय , शील , साहस, उत्साह, बल , सौभाग्य, गम्भीर, रता, स्थिरता, आस्तिकता, कीर्ति, गौरव, और, निरहकरता ये उनतालीस अप्राकृत , गुण ,तथा , महत्वाकांक्षी पुरुषों के द्वारा वाञ्छनीय ( शरणागत वत्सलता आदि ) और भी बहुत से महान गुण उनकी सेवा करने के लिये नित्य निरन्तर निवास करते हैं एक क्षण के लिये भी उनसे अलग नहीं होते उन्हीं समस्त गुणों के आश्रय सौन्दर्य धाम भगवान श्री कृष्ण ने इस समय इस लोकसे अपनी लीला स्मरण कर ली और यह संसार पापमय कलियुग की कुदृष्टि का शिकार हो गया यही देखकर मुझे बड़ा शोक हो रहा है !
!!२५-३०!! अपने लिये देवताओं में श्रेष्ठ तुम्हारे लिये देवता पितर ऋषि साधु और समस्त वर्णों तथा आश्रमों के मुनुष्यों के लिये मैं शोकग्रस्त हो रही हूं !
!!३१!! जिनका कृपा कटाक्ष प्राप्त करने के लिये ब्रह्मा आदि देवता भगवान के शरणागत होकर बहुत दिनों तक तपस्या करते रहे वहीं लक्ष्मी जी अपने निवास स्थान कमल वन का परित्याग करके बड़े प्रेम से जिनके चरण कमलों की सुभग छत्रछाया का सेवन करती हैं उन्हीं भगवान के कमल वज्र अकश ध्वजा आदि चिन्हों से युक्त श्री चरणों से विभूषित होने के कारण मुझे महान वैभव प्राप्त हुआ था और मेरी तीनों लोकों से बढ़ कर शोभा हुई थी परंतु मेरे सौभाग्य का अब अन्त हो गया भगवान ने मुझे अभागिनी को छोड़ दिया मालूम होता है मुझे अपने सौभाग्य पर गर्व हो गया था इसलिये उन्होंने मुझे यह दण्ड दिया है !
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