देवर्षि नारद की भक्ति से भेंट _भाग-२४

 !!१५!! युधिष्ठिर ने कहा_____  शरीर को छेदनेवाली एवं धुलि वर्षा से अंधकार फैलाने वाली आंधी चलने लगी है बादल बड़ा डरावना दृश्य उपस्थित कर के सब ओर खून बरसाते हैं !

देवर्षि -नारद- की -भक्ति- से- भेंट _भाग-२४


!!१६!! देखो सूर्य की प्रभा मन्द पड़ गयी है आकाश में ग्रह परस्पर टकराया करते हैं भूतों की घनी भीड़ में पृथ्वी और अंतरिक्ष में आग सी लगी हुई है !


!!१७!! नदी नद तालाब और लोगों के मन क्षुब्ध हो रहे हैं घीसे आग नहीं जलती यह भयंकर काल न जाने क्या करेगा !


!!१८!! बछड़े दूध नहीं पीते गौएं दूहने नहीं देतीं गोशाला में गौएं आंसू बहा बहा कर रो रही है बैल भी उदास हो रहे हैं !


!!१९!! देवताओं की मूर्तियां रो सी रही है उनमें से पसीना चूने लगता है और वे हिलती-डोलती भी हैं भाई ये देश गांव शहर बगीचे खानें और आश्रम श्रीहीन और अन्दररहित हो गये है पता नहीं ये हमारे किस दुःख की सूचना दे रहे हैं !


!!२०!! इन बड़े-बड़े उत्पातों को देखकर मैं तो ऐसा समझता हूं कि निश्चय ही यह भाग्य हीना भूमि भगवान के उन चरण कमलों से जिनका सौंदर्य तथा जिनके ध्वजा वज्र अंकुशदि विलक्षण चिन्ह और किसी में भी कहीं भी नहीं है रहित हो गयी है !


!!२१!! शौनक जी राजा युधिष्ठिर इन भयंकर उत्पातों को देखकर मन ही मन चिन्तित हो रहे थे कि द्वारका से लौटकर अर्जुन आये !


!!२२!! युधिष्ठिर ने देखा अर्जुन इतने आतुर हो रहे हैं जितने पहले कभी नहीं देखे गये थे मुंह लटका हुआ है कमल सरीखे नेत्रों से आंसू बह रहे हैं और शरीर में बिल्कुल कान्ति नहीं है उनको इस रूप में अपने चरणों में पड़ा देखकर युधिष्ठिर घबरा गए देवर्षि नारद की बातें याद करके उन्होंने सुहदों के सामने ही अर्जुन से पूछा !


!!२३-२४!! युधिष्ठिर ने कहा____भाई द्वारकापुरी में हमारे स्वजन सम्बन्धी मधु , भोज , दशार्ह ,आर्ह , सात्वत अन्धक और वृष्णिवंशी यादव कुशल से तो हैं!


!!२५!! हमारे माननीय नाना शूरसेन जी प्रसन्न हैं अपने छोटे भाई सहित मामा वसुदेव जी तो कुशल पूर्वक हैं !


!!२६!! उनकी पत्नियां हमारी मामी देवकी आदि सातों बहनें अपने पुत्रों और बहुओं के साथ आनन्द से तो हैं!


!!२७!! जिनका पुत्र कंस  बड़ा ही दुष्ट था वे राजा उग्रसेन अपने छोटे भाई देवकके  साथ जीवित तो है न हदीक उनके पुत्र कृतवर्मा अक्रूर जयन्त गद सारण तथा शत्रुजित आदि यादव वीर सकुशल हैं न यादवों के प्रभु बलराम जी तो आनंद से हैं !


!!२८-२९!! वृष्णिवंश के सर्वश्रेष्ठ महारथी प्रवीण प्रद्युम्र सुख से तो है युद्ध में बड़ी फुर्ती दिखलाने वाले भगवान अनिरुद्ध आनन्द से हैं न !


!!३०!! सुषेण चारुदेष्ण जाम्बवतीन्दन साम्ब और अपने पुत्रों के सहित ऋषभ आदि भगवान श्री कृष्ण के अन्य पुत्र भी प्रसन्न है न !


!!३१!! भगवान श्री कृष्ण के सेवक श्रुतदेव उद्धव आदि और दूसरे सुनन्द नन्द आदि प्रधान यदुवंशी जो भगवान श्री कृष्ण और बलराम के बाहुबल से सुरक्षित हैं सब के सब सकुशल है न हमसे अत्यंत प्रेम करने वाले वे लोग कभी हमारा कुशल मंगल भी पूछते हैं !


!!३२-३३!! भक्तवत्सल ब्राह्मण भक्त भगवान श्री कृष्ण अपने स्वजनों साथ द्वारका की सुधर्मा सभा में सुख पूर्वक विराजते हैं न !


!!३४!! वे आदिपुरुष बलराम जी के साथ संसार के परम मंगल परम कल्याण और उन्नति के लिए यदुवंश रूप क्षीरसागर में विराजमान है उन्हीं के बाहुबल से सुरक्षित द्वारकापुरी में यदुवंशी लोग सारे संसार के द्वारा सम्मानित होकर बड़े आनंद से विष्णु भगवान के पार्षदों के समान विहार कर रहे हैं !


!!३५-३६!! सत्यभामा आदि सोलह हजार रानियां प्रधान रूप से उनके चरण कमलों की सेवा में ही रत रहकर उनके द्वारा युद्ध में इंद्रादि देवताओं को भी हराकर इंद्राणी के भोग योग्य तथा उन्हीं की अभीष्ट पारिजातादि वस्तुओं का उपभोग करती हैं !


!!३७!! यदुवंशी वीर श्री कृष्ण के बाहुदण्ड के प्रभाव से सुरक्षित रहकर निर्भर रहते हैं और बलपूर्वक लाली हुई बड़े-बड़े देवताओं के बैठने योग्य सुधर्मा सभा को अपने चरणों से आक्रान्त करते हैं !


!!३८!! भाई अर्जुन यह भी बताओ कि तुम स्वयं तो कुशल से हो न मुझे तुम श्री हीन से दिख रहे हो वहां बहुत दिनों तक रहे कहीं तुम्हारे साम्मान में तो किसी प्रकार की कमी नहीं हुई किसी ने तुम्हारा अपमान तो नहीं कर दिया !


!!३९!! कहीं किसी ने दुर्भावपूर्ण अमंगल शब्द आदि के द्वारा तुम्हारा चित्त तो नहीं दुखाया अथवा किसी आशा से तुम्हारे पास आये हुए याचकों को उनकी मांगी हुई वस्तु अथवा अपनी ओर से कुछ देने की प्रतिज्ञा करके भी तुम नहीं दे सके !


!!४०!! तुम सदा शरणागतों की रक्षा करते आये हो कहीं किसी भी ब्राह्मण बालक गौ बूढ़े रोगी अबला अथवा अन्य किसी प्राणी का जो तुम्हारी शरण में आया हो तुमने त्याग तो नहीं कर दिया !


!!४१!! कहीं तुमने अगम्या स्त्री से समागम तो नहीं किया अथवा गमन करने योग्य स्त्री के साथ असत्कार पूर्वक समागम तो नहीं किया कहीं मार्ग में अपने से छोटे अथवा बराबरी वालों से हार तो नहीं गये !


!!४२!! अथवा भोजन कराने योग्य बालक और बूढ़ा को छोड़कर तुमने अकेले ही तो भोजन नहीं कर लिया मेरा विश्वास है कि तुमने ऐसा कोई निन्दित काम तो नहीं किया होगा जो तुम्हारे योग्य न हो !


!!४३!! हो न हो अपने परम प्रियतम अभिन्न ह्रदय परम सुहद भगवान श्री कृष्ण से तुम रहित हो गये हो इसी से अपने को शून्य मान रहे हो इसके सिवा दूसरा कोई कारण नहीं हो सकता जिससे तुमको इतनी मानसिक पीड़ा हो !


!!४४!! सूतजी कहते हैं____भगवान श्री कृष्ण के प्यारे सखा अर्जुन एक तो पहले ही श्री कृष्ण के विरह से कृश हो रहे थे उस पर राजा युधिष्ठिर ने उनकी विषाद ग्रस्त मुद्रा देखकर उसके विषय में कई प्रकार की आशक्डा़एं करते हुए प्रश्नों की झड़ी लगा दी !


!!१!! शोक से अर्जुन का और ह्रदय कमल सूख गया था चेहरा फीका पड़ गया था वे उन्हीं भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में ऐसे डूब रहे थे कि बड़े भाई के प्रश्नों का कुछ भी उत्तर न दे सके !


!!२!! श्री कृष्ण की आंखों से ओझल हो जाने के कारण वे बढ़ी हुई प्रेम जनित उत्कण्ठा के परवश हो   रहे थे रथ हांकने टहलने आदि के समय भगवान ने उनके साथ जो मित्रता अभिन्न हृदय ता और प्रेम से भरे हुए व्यवहार किये थे उनकी याद पर याद आ रही थी बड़े कष्ट से उन्होंने अपने शोकका  वेग रोका हाथ से नेत्रों के आंसू पोंछे और फिर रुंधे हुए गले से अपने बड़े भाई महाराज युधिष्ठिर से कहा !


!!३-४!! अर्जुन बोले____महाराज मेरे ममेरे भाई अथवा अत्यंत घनिष्ठ मित्रका रूप धारण कर श्री कृष्ण ने मुझे ठग लिया मेरे जिस प्रबल पराक्रम से बड़े बड़े देवता भी आश्चर्य में डूब जाते थे उसे श्री कृष्ण ने मुझसे छीन लिया !


!!५!! जैसे यह शरीर प्राणों से रहित होने पर मृतक कहलाता है वैसे ही उनके क्षण भर के वियोग से यह संसार अप्रिय दीखने लगता है !


!!६!! उनके आश्रय से  द्रौपदी स्वयं स्वयंवर में राजा द्रुपद के घर आये हुए कामोन्मत्त राजाओं का तेज मैंने हरण कर लिया धनुष पर बाण चढ़ाकर सत्स्यवेध किया और इस प्रकार द्रौपदी को प्राप्त किया था !


!!७!! उनकी सन्निधिमात्र से मैंने समस्त देवताओं के साथ इंद्र को अपने बल से जीतकर अग्निदेव को उनकी तृप्ति के लिये खाण्डव वनका दान कर दिया  और मय दानव की निर्माण की हुई अलौकिक कलाकौशल से युक्त मायामती सभा प्राप्त की और आपके यज्ञ में सब ओर से आ-आकर राजाओं ने अनेकों प्रकार की भेंटें समर्पित कीं !


!!८!! दस हजार हाथियों की शक्ति और बलसे पम्पन्न आपके इन छोटे भाई भीमसेन ने उन्हीं की शक्ति से राजाओं के सिर पर पैर रखने वाले अभिमानी जरासन्धका वध किया था तदनन्तर उन्हीं भगवान ने 

उन बहुत से राजाओं को मुक्त किया जिनको जरासन्धने महाभैरव यज्ञ में बलि चढ़ाने के लिये बंदी बना रखा था उन सब राजाओं ने आपके यज्ञ में अनेकों प्रकार के उपहार दिये थे !


!!९!! महारानी द्रौपदी राज सूत यज्ञ के महान अभिषेक से पवित्र हुई अपने उन सुन्दर केशों को जिन्हें दृष्टो ने भरी सभा में छूनेका साहस किया था बिखेर कर तथा आंखों में आंसू भर कर जब श्री कृष्ण के चरणों में गिर पड़ी तब उन्होंने उसके सामने उसके उस घोर अपमान का बदला लेनेकी प्रतिज्ञा करके उन  धुर्तों की स्त्रियों की ऐसी दशा कर दी कि वे विधवा हो गयीं और उन्हें अपने केश अपने हाथों खोल देने पड़े !


!!१०!! वनवास के समय हमारे वैरी दुर्योधन के षड्यंत्र से दस हजार शिष्यों को साथ बिठाकर भोजन कराने वाले महर्षि दुर्वासा ने हमें दुस्तर संकट में डाल दिया था उस समय उन्होंने द्रौपदी के पात्र में बची हुई शाककी एक पत्ती का ही भोग लगाकर हमारी रक्षा की उनके ऐसा करते ही नदी में स्नान करती हुई मुनिमण्डली को ऐसा प्रतीत हुआ मानो उनकी तो बात ही क्या सारी त्रिलोकी ही तृप्त हो गयी है !


!!११!! उनके प्रताप से मैंने युद्ध में पार्वती सहित भगवान शंकर को आश्चर्य में डाल दिया तथा उन्होंने मुझे को अपना पाशु पत नामक अस्त्र दिया साथ ही दूसरे लोकपालों ने भी प्रसन्न होकर अपने अपने अस्त्र मुझे दिए और तो क्या उनकी कृपा से मैं इसी शरीर से स्वर्ग में गया और देवराज इंद्र की सभा में उनके बराबर आधे आसनपर  बैठने का सम्मान मैंने प्राप्त किया !

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