देवर्षि नारद की भक्ति से भेंट _ सच्चितानंद स्वरूप भगवान श्री कृष्ण को हम नमस्कार करते हैं जो जगत की उत्पत्ति और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक आधी दैविक और आधी भौतिक __तीनों प्रकार के तापों का नाश नाश करने वाले है!
!!१!! जिस समय श्री सुखदेव जी का यज्ञोपवीत_संस्कार भी नहीं हुआ था लौकिक_वैदिक कर्मों के अनुष्ठान का अवसर भी नहीं आया था, तभी उन्हें अकेले ही सन्यास लेने के लिए घर से जाते देखकर उनके पिता व्यास जी वी बिरह से कातर होकर पुकारने लगे__बेटा ! बेटा ! तुम कहां जा रहे हो ? उस समय वृक्षों ने तन्मय होने के कारण श्री सुखदेव जी की ओर से उत्तर दिया था! ऐसे सर्व भूत_हृदय स्वरूप श्री सुखदेव मुनि को मैं नमस्कार करता हूं
!!२!! एक बार भगवत अमृत का रसास्वादन करने में कुशल मुनिवर शौनक जी ने नैमिषारण्य क्षेत्र में विराजमान महामती सूत जी को नमस्कार करके उनसे पूछा
!!३!! शौनक जी बोले __सूत जी! आपका ज्ञान अज्ञानान्ध कार को नष्ट करने के लिए करोड़ों सुयो के समान है! हमारे कानों के लिये रसायन___अमृत स्वरूप सारगर्भित कथा कहिये!
!! ४!! भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से प्राप्त होने वाले महान विवेक की वृद्धि किस प्रकार होती है तथा वैष्णव लोग किस तरह से इस माया मोह से अपना पीछा छुड़ाते है?
!!५!! इस घोर कलिकाल में जीव प्रायः आसुरी स्वभाव के हो गए हैं विधि केल्शों से आक्रान्त जीवो को शुद्ध (दैविशक्ति_सम्पत्र) बनाने का सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है?
!!६!! सूत जी! आप हमें कोई ऐसा शाश्वत साधन बताइये जो सबसे अधिक कल्याण कारी तथा पवित्र करने वालों में भी पवित्र हो जाता है भगवान श्री कृष्ण प्राप्ति करा दे!
!!७!! चिंन्तामणि केवल लौकिक सुख दे सकती है और कल्प वृक्ष अधिक से अधिक स्वर्गीय सम्पत्ति दे सकता है: परन्तु गुरुदेव प्रसन्न होकर भगवान का योगि दुर्लभ नित्य बैकुंठधाम देते हैं!
!!८!! श्री सूत जी ने कहा___ शौनक जी! तुम्हारे हृदय में भगवान का प्रेम है; इसलिये मैं विचार कर तुम्हें संपूर्ण सिद्धांतों का निष्कर्ष सुनाता हूं जो जन्म मृत्यु के भय का नाश कर देता है!
!!९!! जो भक्ति के प्रवाह को बढ़ाता है और भगवान श्री कृष्ण की प्रसन्नता का प्रधान कारण है मैं तुम्हें वह साधन बतलाता हूं; उसे सावधान होकर सुनो !
!!१०!! श्री सुखदेव जी ने कलयुग में जीवोऺ के काल रूपी सर्प के मुख का ग्रास होने के त्रास का आत्यन्तिक नाश करने के लिये श्रीमद् भागवत शास्त्र का प्रवचन किया है!
!!११!! मनकी शुद्धि के लिये इससे बढ़कर कोई साधन नहीं है! जब मनुष्य के जन्म-जन्मांतर का पुण्य उदय होता है तभी उसे इस भगवत शास्त्र की प्राप्ति होती है!
!!१२!! जब सुखदेव जी राजा परीक्षित को यह कथा सुनाने के लिए सभा में विराजमान हुए तब देवता लोग उनके पास अमृत का कलश लेकर आये
!!१३!! देवता अपना काम बनाने में बड़े कुशल होते हैं अतः यहां भी सबने सुखदेव मुनि को नमस्कार करके कहां आया अमृत लेकर बदलने में हमें कथामृत का दान दीजिये!
!!१४!! इस प्रकार परस्पर विनिमय(अदला -बदली) हो जाने पर राजा परीक्षित अमृत का पान करें और हमें सब श्रीमद्भागवत रुप अमृत का पान करेंगे!
!!१५!! इस संसार में कहां कांच और कहां महा मूल्य मणि तथा कहां सुधा और कहां कथा श्री सुखदेव जी ने (यह सोच कर) उस समय देवताओं की हंसी उड़ा दी
!!१६!! उन्हें भक्ति शून्य (कथा का अनधिकारी) जानकर कथा मृत का दान नहीं किया इस प्रकार यह श्रीमद्भागवत की कथा देवताओं को भी दुर्लभ है!
!!१७!! पूर्व काल में श्रीमद्भागवत के श्रवण से ही राजा परीक्षित की मुक्ति देकर ब्रह्मा जी को कि बड़ा आश्चर्य हुआ था उन्होंने सत्य लोक में तराजू बांधकर सब साधनों को तौला!
!!१८!! अन्य सभी साधन तौर में हल्के पड़ गये अपने महत्त्व के कारण भागवत की सबसे भारी रहा यह देखकर सभी ऋषियों को बड़ा विस्मयन हुआ!
!!१९!! उन्होंने कलियुग में इस भगवद्रूप भागवत शास्त्र को ही पढ़ने___सुनने से तत्काल मोक्ष देने वाला निश्चय किया!
!!२०!! सप्ताह विधि से श्रवण करने पर यह निश्चय भक्ति प्रदान करता है पूर्व काल में इस दया परायण स्नानादि ने देवर्षि नारद को सुनाया था!
!!१२!! यद्यपि देवर्षि ने पहले ब्रह्मा जी के मुख से इस श्रवण कर लिया था तथापि सप्ताह श्रमण की विधि तो उन्हें सनकिदिने ही बतायी थी!
!!२२!! शौनक जी ने पूछा___सांसारिक प्रपच्ञ से मुफ्त एवं विचरण सील नारद जी का सनकादि के सात संयोग कहां युवा और विधि-विधान के श्रवण में उनकी प्रीति कैसे हुई!
!!२३!! सूत जी ने कहा____अब मैं तुम्हें वह भक्ति पूर्ण कथानक सुनाता हूं जो श्री सुखदेव जी ने मुझे अपना अनन्य शिष्य जानकर एकांत में सुनाया था!
२४ एक दिन विशाला पूरी में वे चारों निर्मल ऋषि सत्सग्ड़ के लिए आये वहां उन्होंने नारद जी को देखा!
!!२५!! सनकादि ने पूछा____ ब्रह्मान आपका मुख उदास हो रहा है आप चिन्तातुर कैसे हैं इतनी जल्दी-जल्दी आप कहां जा रहे हैं और आपका आगमन कहां से हो रहा है!
!!२६!! इस समय तो आप उस पुरुष के समान व्याकुल जान पडते हैं जिसका सारा धन लुट गया हो आप जैसे आसक्ति रहित पुरुषों के लिए यह उचित नहीं है इसका कारण बताये!
!!२७!! नारद जी ने कहां____मैं सर्वोत्तम लोग समझ कर पृथ्वी में आया था यहां पुष्कर, प्रयाग, काशी, गोदावरी (नासिक), हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, श्रीरग्ड़ और सेतुबन्द आदि कई तीर्थों मे मैं इधर उधर विचरता रहा किंतु मुझे कहीं भी मान को संतोष देने वाली शांति नहीं मिली इस समय अधर्म के कलियुग ने सारी पृथ्वी को पीड़ित कर रखा है!
!!२८__३०!! अब यहां सत्य तप शौच (बाहर भीतर की पवित्रता) दया दान आदि कुछ भी नहीं है बेचारे जीव केवल अपना पेट पालने में लगे हुए हैं वे असत्य भाषी, अलसी, मंदबुद्धि, भाग्यहीन, उपद्रव ग्रस्त हो गए हैं जो साधु संत कहे जाते हैं वे पूरे पाखंडी हो गये है देखने में तो वे विरक्त है किंतु रत्री धन आदि सभी का बड़ी परिग्रह करते हैं घरों में रित्रयोंका राज्य है साले सलाहकार बने हुए हैं लोभ से लोग कन्या विक्रय करते हैं और रत्री पुरुषों में कलह मचा रहता है!
!!३१___३३!! महात्माओं के आश्रम तीर्थ और नदियों पर यवनों (विधर्मिरयों) का अधिकार हो गया है उन दुष्टों ने बहुत से देवालय भी नष्ट कर दिये है!
!!३५!! इस समय हां ना कोई योगी है ना सिद्ध है ना ज्ञानी है और न सत्कर् करने वाला ही है सारे साधन इस समय कलिरुप दावान रहे जलकर भस्म हो गये है!
!!३५!! इस कलियुग में सभी देशवासी बाजारों में अत्र बेचने लगे हैं ब्राह्मण लोग पैसा लेकर :वेद पढ़ाते हैं और रित्रयां व वेश्या वृत्ति से निर्वाह करने: में लगी है!
!! ३६!!इस तरह कलियुग में दोष देखता और पृथ्वी पर विचार हुआ मैं यमुना जी के तट पर पहुंचा जहां भगवान श्री कृष्ण अकेकों लीलाएं हो चुकी हैं!
!!३७!! मुनिवरो सुनिये वहां मैंने एक बड़ा आश्चर्य देखा एक युवती रत्री खिन्न मनसे बैठी थी!
!!३८!! उसके पास दो वृद्ध पुरुष अचेत अवस्था में पड़े जोर जोर से सांस ले रहे थे वह तरुणी उनकी सेवा करती हुई कभी उन्हें चेत कराने का प्रयत्न करती और अभी उनके आगे रोने लगती थी!
!!३९!! वह अपने शरीर के रक्षक परमात्मा को दसों दिशाओं में देख रही थी उसके चारों ओर सैकड़ों रित्रयां उसे पंखा झल रही थी और बार-बार समझाती जाती थीं!
!!४०!! दूर से यह सब चरित देखकर मैं कुतूहल लवश उसके पास चला गया मुझे देखकर वह युवती खड़ी हो गई और बड़ी व्याकुल होकर कहने लगी!
!!४१!! युवती ने कहा____अजी महात्मा जी क्षण भर ठहर जाए और मेरी चिंताओं को भी नष्ट कर दीजिये आपका दर्शन तो संसार के सभी पापों को सर्वथा नष्ट कर देखने वाला है!
!!४२!! आपके बचनों मेरे दुख की भी बहुत कुछ शांति हो जाएगी मनुष्य का जब बड़ा भाग्य होता है तभी आप के दर्शन हुआ करते हैं!
!!४३!! नारद जी कहते हैं____तब मैंने उस स्त्री से पूछा तुम कौन हो यह दोनों पुरुष तुम्हारी क्या होते हैं और तुम्हारे पास ये कमल नयनी देवियां कैन हैं तुम हमें विस्तार से अपने दुखका कारण बताओ!
!!४४!! युवती ने कहा____मेरा नाम भक्ति है ये ज्ञान और वैराग्य नामक मेरे पुत्र हैं समय के फेर से ही ये ऐसे जर्जर हो गये है!
!!४५!! ये देवियां गग्ड़ा जी आदि नदियां हैं ये सब मेरी सेवा करने के लिये ही आई है इस प्रकार साक्षात देवियों के द्वारा सेवित होने पर भी मुझे सुख शक्ति नहीं है!
!!४६!! तपोधन अब ध्यान देकर मेरा वृत्तान्त सुनिये मेरी कथा वैसे तो प्रसिद्धि है फिर भी उसे सुनकर आप मुझे शक्ति प्रदान करें!
!!४७!! मैं द्रविड़ देश में उत्पन्न हुई कर्णाटक में बढ़ी कहीं-कहीं महाराष्ट्र में सम्मानित हुई किन्तु गुजरात में मुझेको बुढ़ापे ने आ घेरा!
!!४८!! वहां घोर कलयुग के प्रभाव से पाखंडी योंने मुझे अग्ड़ भग्ड़ कर दिया चिरका लवक यह अवस्था रहने के कारण मैं अपने पुत्रों के दुर्बल और निस्तेज हो गयी!
!!४९!! अब जब से मैं वृंदावन आयी तब से पुनः परम सुन्दरी सुरूप वती लव नवयुवती हो गयी हूं!
!!५०!! किंतु सामने पढ़े हुए दोनों मेरे पुत्र थके मांदे दुखी हो रहे हैं अब मैं यह स्थान छोड़कर अन्यत्र जाना चाहती हूं !
!!५२!! हम तीनों साथ साथ रहने वाले हैं फिर यह विपरीतता क्यो होना तो यह चाहिए कि माता बुढ़ी और पुत्र तरुण!
!!५३!! इसी से मैं आश्चर्य चकित चित्तसे अपनी इस आवस्था पर शोक करती रहती हूं आप परम दिमाग एवं योगिनीधि है इसका क्या कारण हो सकता है बताये!
!!५४!! नारद जी ने कहा____साध्वि मैं अपने ह्रदय में ज्ञानदृष्टि से तुम्हारे संपूर्ण दुख का कारण देखता हूं तुम्हें विषाद नहीं करना चाहिये श्रीहरि तुम्हारा कल्याण करेंगे!
सूत जी कहते हैं____मुनिवर नारद जी ने एक क्षण में उसका कारण जानकर कहा!
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