महाभारत युद्ध में छोटे राज्य से लेकर बड़े राज्य तक सभी योद्धाओं ने इस युद्ध में हिस्सा लिया था परंतु एक ऐसा भी शक्तिशाली योद्धा था जिसने इस युद्ध में भाग नहीं लिया था
शायद ही आपको इस बात की जानकारी होगी की पांडव पुत्र भीम और धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन के गुरु बलराम थे बलराम ने ही इन दोनों को गधा चलाने की शिक्षा दी पांडव और कौरव दोनों ही बलराम के लिए प्रिय थे महाभारत का जब युद्ध शुरू हुआ तो वह किसी एक का पक्ष लेकर के दूसरे के साथ अन्याय नहीं करना चाहते थे बलराम ने श्री कृष्ण को भी यह सुझाव दिया कि उन्हें भी इस युद्ध में भाग नहीं लेना चाहिए
युद्ध में शामिल हुए दोनों पक्ष उनके ही संबंधी हैं और यही नहीं बलराम ने पहले ही दुर्योधन को यह वचन दिया था महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण और वे स्वयं शस्त्र नहीं उठाएंगे श्री कृष्ण ने बलराम के दिए वचनों का मान रखते हुए उन्होंने महाभारत युद्ध में शस्त्र नहीं उठाया और वह अर्जुन का सारथी भयंकर युद्ध में हिस्सा लिया
श्री कृष्ण ने बलराम को यह समझाया कि धर्म स्थापना के लिए इस युद्ध का होना आवश्यक है रही बात संबंधों की तो इसके लिए मेरे पास एक उपाय है और फिर श्री कृष्ण ने पांडवों और कौरवों के बीच में यह प्रस्ताव रखा कि तुम दोनों को मुझे या फिर मेरे सहस्त्र नारायणी सेना में से किसी एक का चयन करना होगा परंतु मैं तुम दोनों को यह पहले ही बता देता हूं कि संपूर्ण युद्ध मैं ना ही युद्ध करूंगा और ना ही शस्त्र धारण करूंगा
श्री कृष्ण ने बलराम को यह समझाया कि धर्म स्थापना के लिए इस युद्ध का होना आवश्यक है रही बात संबंधों की तो इसके लिए मेरे पास एक उपाय है और फिर श्री कृष्ण ने पांडवों और कौरवों के बीच में यह प्रस्ताव रखा कि तुम दोनों को मुझे या फिर मेरे सहस्त्र नारायणी सेना में से किसी एक का चयन करना होगा परंतु मैं तुम दोनों को यह पहले ही बता देता हूं कि संपूर्ण युद्ध मैं ना ही युद्ध करूंगा और ना ही शस्त्र धारण करूंगा
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यह सुनकर के दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को छोड़ कर नारायणी सेना को चुना और अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना एक तरफ जहां दुर्योधन के पास श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए सहस्त्र नारायणी सेना और एक ग्यारह ईश्वर रोहिणी सेना थी और पांडवों के पास 8 अश्व रोहिणी सेना थी इसके बाद भी बलराम ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया और सरस्वती नदी तट वर्ती तीर्थ यात्रा पर चल पड़े बलराम की तीर्थ यात्रा पर जाने से पहले एक वृतांत का वर्णन महाभारत में मिलता है
जिसमें इस बात का वर्णन किया गया है जिस समय युद्ध की तैयारियां चल रही थी उस बीच 1 दिन बलराम पांडव की छावनी में अचानक जा पहुंचे अपने बड़े भाई बलराम को आता हुआ देख कर श्री कृष्ण युधिष्ठिर सहित सभी लोग अत्यंत प्रसन्न हुए सभी ने बलराम का आदर किया उसके बाद सभी का अभिवादन कर बलराम युधिष्ठिर के समीप बैठ गए और अपने मन में चल रहे विडंबना को बलराम ने युधिष्ठिर से बड़े ही उदास मन से कहा मैंने कृष्ण से कितनी बार कहा है कि हमारे लिए पांडव और कौरव दोनों ही एक ही समान है
दोनों को ही मूर्खता करने की सोची है और हमें इस में नहीं पड़ना चाहिए परंतु कृष्ण ने मेरी एक ना सुनी कृष्ण का अर्जुन के प्रति प्रेम इतना ज्यादा है कि वह कौरव के विपक्ष में है जिस तरफ कृष्ण है भला मैं उसके विपक्ष में कैसे जाऊं और दूसरी तरफ भीम और दुर्योधन है दोनों ने ही मुझसे गधा सीखने की शिक्षा ली है दोनों ही मेरे शिष्य है इसलिए दोनों के लिए ही मेरा एक जैसा ही स्नेह है कौरव वंशीय को आपस में लड़ते हुए मैं नहीं देख सकता इसीलिए मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं
एक तरफ जहां पर विश्व का सबसे बड़ा युद्ध चल रहा था और वहीं दूसरी तरफ संसार के सबसे बड़ा योद्धा बलराम अपने तीर्थ यात्रा पर निकल गए जब बलराम अपने तीर्थ यात्रा से लौटे उस समय युद्ध का अंतिम चरण पर था कुरुक्षेत्र की रणभूमि में दुर्योधन और भीम के बीच युद्ध हो रहा था श्री कृष्ण ने भीम को देखकर दुर्योधन के जंगा के तरफ इशारा किया और दुर्योधन वहीं पर गिर पड़े यह देख कर बलराम को गुस्सा आ गया और बलराम ने श्री कृष्ण से कहा कृष्ण दुर्योधन मेरे सामान बलवान था छल पूर्वक दुर्योधन को नही गिराया गया
अपितु यह मेरा भी अपमान है यह कहकर बलराम ने अपना हल उठाया और भीम के तरफ दौड़ने लगे भीम को दंड देने के लिए तभी श्रीकृष्ण ने बीच बचाव करते हुए कहा जब धर्म और अधर्म के बीच युद्ध लड़ा जा रहा था तब आपने समय की इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया था अब आपको इस प्रकार बीच में आकर युद्ध के नतीजों को प्रभावित करना उचित नहीं है भगवान श्री कृष्ण के समझाने पर बलराम शांत हो गए परंतु उनका मन शांत नहीं हुआ
तभी बलराम ने यह कहा कि दुर्योधन को अधर्म पूर्वक मारकर पांडव पुत्र भीम को सारा संसार कपट पूर्ण युद्धा के रूप में विख्यात होंगे और वहीं पर दुर्योधन को सनातन सद्गति प्राप्त होगी और फिर बलराम वहां से चले गए इस तरह से श्री कृष्ण ने बिना अस्त्र-शस्त्र उठाए धर्म की स्थापना की
यह सुनकर के दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को छोड़ कर नारायणी सेना को चुना और अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना एक तरफ जहां दुर्योधन के पास श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए सहस्त्र नारायणी सेना और एक ग्यारह ईश्वर रोहिणी सेना थी और पांडवों के पास 8 अश्व रोहिणी सेना थी इसके बाद भी बलराम ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया और सरस्वती नदी तट वर्ती तीर्थ यात्रा पर चल पड़े बलराम की तीर्थ यात्रा पर जाने से पहले एक वृतांत का वर्णन महाभारत में मिलता है
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दोनों को ही मूर्खता करने की सोची है और हमें इस में नहीं पड़ना चाहिए परंतु कृष्ण ने मेरी एक ना सुनी कृष्ण का अर्जुन के प्रति प्रेम इतना ज्यादा है कि वह कौरव के विपक्ष में है जिस तरफ कृष्ण है भला मैं उसके विपक्ष में कैसे जाऊं और दूसरी तरफ भीम और दुर्योधन है दोनों ने ही मुझसे गधा सीखने की शिक्षा ली है दोनों ही मेरे शिष्य है इसलिए दोनों के लिए ही मेरा एक जैसा ही स्नेह है कौरव वंशीय को आपस में लड़ते हुए मैं नहीं देख सकता इसीलिए मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं
एक तरफ जहां पर विश्व का सबसे बड़ा युद्ध चल रहा था और वहीं दूसरी तरफ संसार के सबसे बड़ा योद्धा बलराम अपने तीर्थ यात्रा पर निकल गए जब बलराम अपने तीर्थ यात्रा से लौटे उस समय युद्ध का अंतिम चरण पर था कुरुक्षेत्र की रणभूमि में दुर्योधन और भीम के बीच युद्ध हो रहा था श्री कृष्ण ने भीम को देखकर दुर्योधन के जंगा के तरफ इशारा किया और दुर्योधन वहीं पर गिर पड़े यह देख कर बलराम को गुस्सा आ गया और बलराम ने श्री कृष्ण से कहा कृष्ण दुर्योधन मेरे सामान बलवान था छल पूर्वक दुर्योधन को नही गिराया गया
अपितु यह मेरा भी अपमान है यह कहकर बलराम ने अपना हल उठाया और भीम के तरफ दौड़ने लगे भीम को दंड देने के लिए तभी श्रीकृष्ण ने बीच बचाव करते हुए कहा जब धर्म और अधर्म के बीच युद्ध लड़ा जा रहा था तब आपने समय की इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया था अब आपको इस प्रकार बीच में आकर युद्ध के नतीजों को प्रभावित करना उचित नहीं है भगवान श्री कृष्ण के समझाने पर बलराम शांत हो गए परंतु उनका मन शांत नहीं हुआ
तभी बलराम ने यह कहा कि दुर्योधन को अधर्म पूर्वक मारकर पांडव पुत्र भीम को सारा संसार कपट पूर्ण युद्धा के रूप में विख्यात होंगे और वहीं पर दुर्योधन को सनातन सद्गति प्राप्त होगी और फिर बलराम वहां से चले गए इस तरह से श्री कृष्ण ने बिना अस्त्र-शस्त्र उठाए धर्म की स्थापना की
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